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________________ जहणकालपरूवणा उक्क अंतो० । अज० सव्वद्धा । सेसाणं जह० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखे । ज० सव्वद्धा । ५४१. मणुसपज्जत्त -- मणुसिणी सो चैत्र भंगो । वरि यहि अवलिया ० असं तम्हि संखेज्जसम० । मणुस पज्जत्त० सव्वपगदीणं जह० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखे० । अज० जह० खुद्दाभव० विसमयणं, उक० पलिदो ० असं० । वरि सव्वह परियत्तियां आयुगाणं च अज० पगदिकालो कादव्वो । hari futयभंग | वरि एइंदि० - आदाव थावर० सत्थाणभंगो | ५४२. एईदिए मणुसायु० -- तिरिक्खगदि --- तिरिक्खाणु० --- उज्जो ० -- णीचा० घं । सेसाणं जह० अ० सव्वद्धा । पुढवि० - आउ०- तेउ० वाउ० - बादरपुढ वि०आउ० तेउ०- वाउ०- बादर-वणफदिपत्तेय० दोश्र० श्रघं । सेसागं जह० जह० एग०, उक्क० पलिदो ० असंखेज्ज० । अज० सव्वद्धा । वादरपुढ वि० - वाउ ० तेउ० - वाउ०अपज्जत्ता • मणुसागु० ओघं । सेसाणं जह० अ० सव्वद्धा । एवं वरणफदिणियोद-बादरवणफदि-पियोद - पज्जत - अपज्जत्त० बादरवणफदिपत्तेय ० अपज्जत्ताणं 1 ७ समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है | जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । २५१ ५४२. मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें वही भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि जहाँ पर लिके श्रसंख्यातवें भाग प्रमाण काल कहा है, वहाँ पर संख्यात समय काल कहना चाहिए । मनुष्य अपर्याप्तकों में सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल दो समय कम क्षुल्लक भव ग्रहण प्रमाण है और उत्कृष्ट काल पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । इतनी विशेषता है कि सर्वत्र परिवर्तमान प्रकृतियोंकी और श्रायुओंकी अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल प्रकृतिबन्धके कालके समान कहना चाहिए । देवोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रिय, आतप और स्थावर इनका भङ्ग स्वस्थानके समान है । ५४२. एकेन्द्रियों में मनुष्यायु, तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्च गत्यानुपूर्वी, उद्योत और नीच गोत्रका भङ्ग के समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, बादर पृथ्वीकायिक, बादर जलकायिक, वादर अग्निकायिक, बादर वायुकायिक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर जीवों में दो आयुका भङ्ग श्रोघके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त और वादर वायुकायिक अपर्याप्त जीवों में मनुष्यायुका भङ्ग के समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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