SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक्कस्सकालपरूवणा २४५ ० 1 ५२५. मणुसेसु खिरय देवायु० उक्क० जह० एग०, उक्क० संखेज्जसम० । अणु० जह० उक्क अंतो० । तिरिक्ख मणुसायु उक्क० श्रघं । अणु० जह० तो ०, उक्क० पलिदो० असंखेज्ज० । सेसाणं उक्क० जह० एग०, [उक्क० ] अंतो० । अणु० सव्वद्धा । आहारदुर्गं तित्थय० श्रघं । मणुसपज्जत - मणुसिणीसु चदुप्रयु० उक्क० जह० एग०, उक्क० संखेज्जसम० । अणु० जहरगु० अंतो० । सेसागं उक्क० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अणु० सव्वद्धा । आहारदुगं तित्थय० ओघं । 1 ५२६. सव्वट्टे सव्वपगदी उक्क० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अणु० सव्वद्धा । आयु० रियभंगो । ५२७. सव्वएईदिए तिरिक्ख - मणुसायु० पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो । raft तिरिक्खायु० अणु सव्वद्धा । सेसाणं उक्क० अणु सव्वद्धा । एस भंगो. सव्वसुहुमाणं बादरपुढवि ०. ० आउ० तेउ० - वाउ ० अपज्जत्त ० --- वणप्फदि--रिणयोद० बादरपज्जत्त-अपज्जत्ता० बादरवणप्फदिपत्तेय० अपज्जत्तगाणं च । ५२८. पुढवि० उ० तेउ ० - वाउ०० - बादर पुढवि० आउ०- तेज० -- वाउ०- बादर ५२५. मनुष्यों में नरकायु और देवायुका उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका काल श्रोघके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यालवें भाग प्रमाण है । शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवका सब काल है । श्राहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग श्रोघके समान है। मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनी जीवों में चार श्रायुओंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । श्रनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका सब काल है । आहारकद्विक और तीर्थङ्करका भङ्ग श्रधके समान है । ५२६. सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवों का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका सब काल है । आयुका भङ्ग नारकियोंके समान है । ५२७. सब एकेन्द्रियोंमें तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्या कोंके समान है । इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्चायुकी अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका काल सर्वदा है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका काल सर्वदा है । यह भङ्ग सब सूक्ष्म, बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त, बादर जलकायिक अपर्याप्त, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त, बादर वायुकायिक अपर्याप्त, वनस्पतिकायिक, निगोद और इन दोनोंके बादर और पर्याप्त अपर्याप्त तथा वादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए । ५२८. पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वादर पृथ्वीकायिक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy