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________________ २४६ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे वणप्फदिपत्तेय. दोआयु० एइंदियभंगो । पज्जत्तगे. दोआयु पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो । सेसाणं पगदीणं उक्क० जह० एग०, उक० पलिदो० असंखें । अणुः सव्वद्धा। __ ५२६. पंचिंदिय--तस०२ तिरिणायु० उक्क जह ० एग०, उक्क० संखेंजसम० । अणु० जह• अंतो०, उक्क० पलिदो० असंखें। सेसाणं अोघं । एवं पंचमण-पंचवचि०-वेउव्वियका-इत्थि--पुरिस०--विभंग०-चक्खुदं०--तेउले०-पम्मलेमुक्कले०--सणिण त्ति । णवरि पंचमण-पंचवचि०--उव्वि० आयु. अणु० जह० एग०, उक. पलिदो० असंखेंजः । तेउ-पम्माए तिरिक्व-मणुसायु० देवोघं । सुक्काए दो वि आयु मणुसिभंगो। ५३०. ओरालियमिस्से दोआयु० एइंदियभंगो । देवगदि०४-तित्थय० सत्थाणे उक्क० जह० एग०, उक्क. अंतो०। अणु० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अथवा सरीरपज्जत्तीए दिज्जदि त्ति तदो उक्क० जहएणु० अंतो० । अणु० जह० उक्क अंतो० । सेसाणं उक्क० जह० एग०, उक्क० पलिदो० असंखेंज । अणु० सव्वद्धा अधाबादर जलकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर वायुकयिक और बादर वनस्पतिकायिक, प्रत्येक शरीर जीवों में दो आयुओंका भङ्ग एकेन्द्रियोंके समान है। इनके पर्याप्तकोंमें दो आयुओका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान है। शेष प्रकृतियोंको उत्कृष्ट स्थिति का बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका काल सर्वदा है। ५२६. पञ्चेन्द्रियद्विक और त्रसद्विक जीवोंमें तीन आयुओंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग श्रोधके समान है। इसी प्रकार पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, वैक्रियिक काययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभङ्गज्ञानी, चक्षुदर्शनी, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले, शुक्ललेश्यावाले और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी और वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें आयुकी अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल एल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। पीत और पद्मलेश्यावाले जीवों में तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है। शुक्ललेश्यावाले जीवों में दोनों ही आयुओंका भङ्ग मनुष्यिनियोंके समान है। ५३०. औदारिकमिश्रकाययोगी जोवोंमें दो आयुओंका भङ्ग एकेन्द्रियों के समान है। देवगति चतुष्क और तीर्थङ्कर इनकी स्वस्थानमें उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है अथवा शरीर पर्याप्तिमें अगर यह काल प्राप्त किया जाता है तो उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जोवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अनुत्कृष्ट For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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