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________________ उक्करसफोसणपरूवणा २४३ पंचचो० । सेसाणं जह० अट्ठचौ। अज० अणुक्कस्सभंगो। सम्मामिच्छे सव्वपगदीणं जह अज० अढचों । णवरि देवगदि०४ जह० खेत । सएिण. पंचिंदियभंगो। असणिण तिरिक्खोघं । णवरि आयु०-वेउव्वियछ० जह० अज० खेत्तभंगो । एवं जहएणयं समत्तं । एवं फोसणं समत्तं । - कालपरूवणा ५२२. कालो दुवि०-जह० उक्कस्सयं च । उकस्सए पगदं। दुवि०-ओघे० आदे। ओघे० णिरयायु० उकाटिदिबंधया केवचिरं कालादो होदि १ जहण्णेण एगसमयं, उक्कस्सेण श्रावलियाए असंखेजदिमागो । अणु० जह० अंतो०, उक्क० पलिदोवमस्स असंखेजदि.। तिरिक्खायु० उक्क० जह० एग०, उक्क० संखेज्जसमया । अणु० सव्वद्धा । मणुस-देवायु० उक० जह० एग०, उक्क० संखेजसम० | अणु० जह० अंतो०, उक० पलिदोवमस्स असंखेजदिमा० । आहार-आहार०अंगो०-तित्थय० उक्क० जहण्णु० अंतो०,अणु० सव्वद्धा। सेसाणं उक्क० जह० एग०, उक्क० पलिदो० असंखें। जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । देवगतिचतुष्ककी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँच वटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाठ बटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन अनुत्कृष्टके समान है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चोदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि देवगति चतुष्ककी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। संज्ञी जीवोंमें अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग पञ्चेन्द्रियोंके समान है। असंज्ञी जीवोंमें समान्य तिर्यञ्चोंके समान है। इतनी विशेषता है कि आयु और वैक्रियिक छह इनकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इस प्रकार जघन्य स्पशन समाप्त हुआ। इस प्रकार स्पर्शन समाप्त हुआ। कालप्ररूपणा ५२०. काल दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे नरकायुकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। तियश्चायुकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका सब काल है। मनुष्यायु और देवायुकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवीका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्यकाल अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । आहारक शरीर, आहारक आङ्गोपाङ्ग और तीर्थङ्कर इनकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका सब काल है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका सब काल है। इसी प्रकार ओघके समान सामान्य तियञ्च, काययोगी, औदारिक काययोगी, नपुंसकवेदी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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