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________________ २४२ महाबंचे द्विदिबंधाहिया रे खड़गे देवगदि०४ खेत । उवसमे तित्थय० खेत्तं । चक्खदं० तसपजतभंगो । ५२०. किण्ण० - गील० - काउ० श्रसंजदभंगो । वरि देवग दि०३ - तित्थय० खेचं । मसायु० तिरिक्खभंगो | तेऊए० पंचणा० - वदंसणा ० - खादासाद० - मोह०२४पंचिंदि० - तेजा ० - ० - समचदु० चण्ण०४ - अगु०४ - पसत्थत्रि ०-तस०४ - थिराथिर सुभा सुभ-जस० - अजस० णिमि० उच्चा० - पंचंत० जह० खेत' । अज० अणुकरसभंगो | देवगदि०४ जह० खैतं । श्रज० दिवडचो० । सेसाणं सोधम्मभंगो । एवं पम्माए सहस्सारभंगो कादव्वो । देवदि०४ जह० खेचं । अज० पंचचो० | सुकाए मणुसग दिपंचग० जह० अज० बच्चोद्द० | सेसाणं जह० खैच । अज० छच्चो० । णवरि इत्थि० - स०पंचसंठा०-पंच संघ०-अप्पसत्थ० - दूर्भाग- दुस्सर - प्रणादे० जह० अ० बच्चों० । ५२१. सासणे इत्थि० - पंचसंठा० - पंच संघ० - अप्पसत्थ० -तस०४ जह० ज० अट्ठ - एकारस० । मणुसगदिपंचग० जह० अज० अट्ठचों० | देवगदि०४ जह० ज० जीवों का भङ्ग अभिनिबोधिकज्ञानी जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें देवगतिचतुष्कका भङ्ग क्षेत्रके समान है तथा उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग क्षेत्र के समान है । चक्षुदर्शनवाले जीवोंका भङ्ग त्रसपर्याप्त जीवोंके समान है । ५२०. कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंका भङ्ग असंयत जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि देवगति त्रिक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग क्षेत्र के समान है । तथा मनुष्यायुका भङ्ग तिर्यष्चों के समान है । पीतलेश्यावाले जीवों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, चौबीस मोहनीय, पञ्चेन्द्रिय जाति, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, समचतुरस्र संस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रस चतुष्क, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यशः कीर्ति, अयशः कीर्ति, निर्माण, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । तथा अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन अनुत्कृष्टके समान है । देवगति चतुष्ककी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है तथा अजघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग सौधर्म कल्पके समान है । इसी प्रकार पद्मलेश्या - वाले जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सहस्त्रार कल्षके समान भङ्ग करना चाहिए | तथा देवगति चतुष्ककी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँच बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शुक्ल लेश्यावाले जीवोंमें मनुष्यगतिपञ्चककी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बढे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बढ़े चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुभंग, दुखर और अनादेय इनकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने-कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । ५२१• सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंमें स्त्रीवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति और स चतुष्ककी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बढ़े चौदह राजू और कुछ कम ग्यारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । मनुष्यगतिपश्वककी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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