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________________ जहरणको सपरूवणा २४१ सत्थ० - दूर्भाग- दुस्सर - प्रणादे० जह० श्रड - बारहचौ० । अज० अणुकरसभंगो । मणुसगदिपंचग० जह० अ० श्रचोद० । सेसाणं जह० खेत्तं । अज० श्रणुकरसभंगो । वरि एइंदि० - थावर० जह० श्रट्ट - एक्चों६० । श्रज ० अणुकरसभंगो । सुडुम० जह० ज० लो० सं० सव्वलो ० । O ५१८. आभिणि० - सुद० - प्रोधि० मणुसायु० - मणुसगदिपंचग० जह० अज० चौदस० । देवायु० - श्राहारदुगं खेतं । देवगदि०४ उक्करसभंगो | सेसाणं जह० खेत । श्रज० अणुकरसभंगो । मणपज्ज० - संजद - सामाह० - छेदो ० - परिहार०सुहुमसं० तं । ५१६. संजदासंजद० असादा० - अरदि- सोग - अधिर - असुभ -प्रजस० जह० श्रज० छच्चोद्द० | देवायु० - तित्थय० जह० अन० खेत' । सेसाणं जह० र्खेत । अज० छच्चद्द० । ओधिदं०- सम्मादि० - खड्ग ० - वेदग० - उवसम० - आभिणि० भंगो । यवरि कुछ कम बारह वटे चौदह राजू क्षेत्र का स्पर्शन किया है । अजघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका स्पर्शन अनुत्कृष्टके समान है । स्त्रीवेद, नपुंसक वेद, पाँच संस्थान, पांच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर और अनादेय इनकी जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्र का स्पर्शन किया है तथा अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन अनुत्कृष्टके समान है । मनुष्यगतिपञ्चककी जघन्य और अ घन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियों की जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । तथा अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन अनुत्कृष्ट के समान है । इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रिय जाति और स्थावर इनकी जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन अनुत्कृष्टके समान है। सूक्ष्मकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । ५१८. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें मनुष्यायु और मनुष्यगति पञ्चककी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह क्षेत्रका स्पर्शन किया है । देवायु और आहारकद्विकका भङ्ग क्षेत्रके समान है । देवगतिचतुष्कका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है तथा अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन अनुत्कृष्टके समान है । मन:पर्ययज्ञानी, संयंत, सामायिक संयत, छेदोपस्थापना संयत, परिहारविशुद्धि संयत और सूक्ष्मसाम्पराय संयत जीवोंका भङ्ग क्षेत्रके समान है । ५१६. संयतासंयत जीवोंमें असाता, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्ति इनकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । देवायु और तीर्थंकर इनकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । तथा अन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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