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________________ जहएणफोसणपरूवणा २३७ ५०८. मणुसगदीएसु३ सव्वपगदीणं जह० खेच। अज. अप्पप्पणो फोसणं कादव्वं । एवं मणुसअपज्जत्त। ५०९. देवेसु थावरपगदीणं जह० खेतं । अज्ज. अट्ठ-णवचो । तसपगदी] जह० खेत्तभंगो । अज० अट्टचों । णवरि दोआयु०-तित्थय० जह० अज० अट्ठचोद्द । एवं सव्वदेवाणं अप्पप्पणो फोसणं णादण णेदव्वं । ५१०. एइंदिए तिरिक्खोघं । बादरएइंदिय-पज्जत्त-अपज्जत्त० सव्वपगदीणं जह० लोग० संखेज्ज० । अज० सव्वलो० । णवरि मणुसायु०-मणुसगदि-मणु साणु०-उच्चा० जह० अज० लोग० असंखेन्जः। एइंदि०-थावर० जह• सत्तचों । अज० सबलो० । उज्जो०-बादर०-जसगि० जह० खेत्तं । अज० सत्तचोद । तिरिक्खायु०-आदाव०-सुहुम०-तसपगदीणं च खेत्तं । ५११. पुढवि०-आउ०-तेउ०-वाउ० तिरिक्खायु०-सुहुम० जह० अज. सव्वलो० । सेसाणं जह० लोग० असंखेज्ज० । अज० सव्वलो० । णवरि एइंदिय-थावर० कायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक पर्याप्त और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए। ५०८. मनुष्यत्रिकमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका अपना-अपना स्पर्शन करना चाहिए। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए । ५०६. देवोंमें स्थावर प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पशन किया है। त्रस प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पशन क्षेत्रके समान है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौवह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि दो आयु और तीर्थकर प्रकृतिकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सब देवोंके अपना-अपना स्पशन जानकर ले आना चाहिए । . ५१०. एकेन्द्रियों में सामान्य तिर्यकचोंके समान भङ्ग है। बादर एकेन्द्रिय और उनके पर्याप्तअपर्याप्त जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवींने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यायु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगीत्रकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। एकेन्द्रिय जाति और स्थावरकी जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । उद्योत, बादर और यश कीर्ति इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षत्रके समान है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजू क्षेत्र का स्पर्शन किया है। तिर्यन्चायु, आतप, सूक्ष्म और त्रस प्रकृतियोंका भङ्ग क्षेत्रके समान है। ५११. पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंमें तिर्यश्चायु और सूक्ष्म इनकी जघन्य और अजघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्र का स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र का स्पर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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