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________________ २३६ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे णादें-अजस०-णिमि०-णीचा०-पंचंतराइगं० जह० लो० असंखेंज० । अज० लो० असखेंज० सव्वलो० । णवरि एईदि०-थावर० जह० सत्तचोद्दस० । उजो०-जसगि० जह० खेत्तं । अज० सत्तचौद्दस०। बादर० जह० खेतं । अज० तेरहचौदस । सुहम० दो वि पदा लोग० असंखेज्ज० सवलो० । सेसाणं जह• खेत्तं । अज. अप्पप्पणो [ फोसणं कादव्वं ।] ५०७. पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्ता० पंचणा०-गवदसणा०-दोवेदणी०-मोहणीय०२४-तिरिक्खगदि-एईदिय०-ओरालि०-तेजा०-०-हुड०-वएण०४-तिरिक्खाण०-अगु०४-थावरणा०-पज्जत्त-अपज्जत-पो०-साधार०-थिराथिर-सुभो. सुभ-भग-अणादें-अजस-णिमि०-णीचा०-पंचंत० जह० खेलें। अज०ट्टि० लोग. असंखेंज. सव्वलो० । णवरि एइंदि०-थावर० जह० सत्तचोद्द० । उज्जो०-बादर०जसगि० जह० खेत्त । अज. साचोदस० । सेसाणं जह० अज० खेतभंगो । सवरि सुहम० जह० अज० लोग० असंखेज. सव्वलो० । एवं पंचिदिय-तस-अपजगाणं सव्वविगलिंदिय-बादरपुढवि०-आउ०-तेउ०-वाउ०-बादरवणप्फदिपशेय०पन्जचाणं च । क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमोण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रिय जाति और स्थावरकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । उद्योत और यशःकीर्तिकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। बादरकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सूक्ष्मके दोनों ही पदवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका अपना अपना स्पर्शन करना चाहिए । ५०७. पञ्चन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, चौवीस मोहनीय, तियश्चगति, एकेन्द्रिय जाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, क हुण्डसंस्थान, वर्णचतुष्क, तियश्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, स्थावर, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुभंग, अनादेय, अयशःकीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र और पांच अन्तराय इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रिय जाति और स्थावर इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पशन किया है। उद्योत, बादर और यशःकीर्ति इनकी जघन्य स्थिति बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियों की जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि सूक्ष्मकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार, पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त और त्रस पर्याप्त जीवोंके तथा सब विकलेन्द्रिय, बादर पृथ्वी x. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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