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________________ २३५ जहएणफोसणपरूवणा क्खायु-मणुसगदितिगं खेत्तं । सेसाणं जह० खेनं । अज० छच्चोंदस० । ५०५. तिरिक्खेसु पंचणा०-णवदंसणा०-दोवेदणीय--मिच्छ०--सोलस: ०णवणोक०-दोगदि--चदुजादि-ओरालि०-तेजा०-क०-छस्संठा०--मोरालि अंगो०-- छस्संघ०-वएण०४-दोबाणु०-अगु०४-प्रादाउजो०-दोविहा०-तस-चादर -पज्जत्तअपञ्जत-पत्ते०-साधार०-थिरादिछयुग०-णिमि०-णीचच्चा०-पंचंत० जह० खे । अज० सबलो० । तिरिक्खायु-सुहुमणा. जह० अज० सव्वलो० । मणुसायु० जह० अज. लोग. असंखेज. सव्वलो०। एइंदि०--थावर-वेउब्धियछ० ओघं । एवं तिरिक्खोघं मदि०-सुद०-असंज०--अब्भवसि०--मिच्छादिहि त्ति । वरि एदेसिं देवगदि-देवाण. अज. पंचचोदस० । णवरि असंजद० वेउव्वि०-वेउवि०अंगो० अज० एक्कारहचोद्दस० । असंज० तित्थय० अज० अढचोद्दसः । ५०६. पंचिंदियतिरिक्ख०३ पंचणा०-णवदंसणा०-सादासाद०- मोहणीय० २४-तिरिक्खगदि-एइंदि०--ओरालि०-तेजा०-०-हुंड०-वण्ण०४-तिरिक्खाणु०मगुरु०४-थावर- पञ्जत्त- अपजत्त-पत्तेय०-साधार०-थिराथिर-सुभासुम-भग-अप्रकृतियों की जघन्य स्थिति के बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्र के समान है। अजघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। ५०५. तिर्यञ्चोंमें पांच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, दो गति, चार जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, छह संस्थान, औदारिक प्राङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, वर्णचतुष्क, दो आनुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, बस, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येकशरीर, साधारणशरीर, स्थिर आदि छह युगल, निर्माण, नीचगोत्र, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पशन क्षेत्रके समान है । अजवन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तियश्चायु और सूक्ष्मकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने सव लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । मनुष्यायुको जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । एकेन्द्रिय जाति, स्थावर और वैक्रियिक छहका भङ्ग ओषके समान है। इसी प्रकार सामान्य तियश्चोंके समान मत्यज्ञानी, श्रताज्ञानी, असयत, अभव्य और मिथ्याहाट जीवीके जानना चाहिए। इतना विशेपता है कि इन जीवोंके देवगति और देवगत्यानुपूर्वीकी अजयन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम पांच बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इतनी विशेषता है कि असंयत जीवोंमें वैक्रियिक शरीर और वैक्रियिक प्राङ्गोपाङ्गकी अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम ग्यारह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा इन्हीं असंयत जीवोंमें तीर्थङ्कर प्रकृतिकी अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। ५०६. पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिकमें पांच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, मोहनीय चौवीस, तियश्चगति, एकेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्डसंस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु चतुष्क, स्थावर, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयशःकीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र और पांच अन्तराय इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवं भाग प्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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