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________________ २३४ महाबंधे डिदिबंधाहियारे देवायु०-आहारदुर्ग उक्करसभंगो। एवं सव्वत्थ । तिरिक्खायु--सुहुम० जह० अज० सव्वलो० । मणुसायु० जह० [अज०] लोग० असंखेंज. सव्वलोगो वा । णिरय-देवगदि-णिरय-देवाणु० जह० खेत । मज० छच्चोंद । एइंदि०-थावर० जह० सत्तचोद्द० । अज० सव्वलो० । वेउबि०-वेउव्विअंगो० जह० खेत । अजह० बारहों। तित्थय० जह० खेत्त । अज० अट्टचो । ५०४. णिरएसु दोआयु-मणुसग०-मणुसाणु०--तित्थय०-उच्चा० उकस्सभंगो । सेसाणं जह० खेत्तभंगो । अज० छच्चोस । पढमाए खेत्तं । विदियादि याव छट्टि त्ति तिरिक्खायु-मणुसगदि०४-तित्थय० खेत। सेसाणं जह० खेत्तं । अज० एक-दोतिण्णि-चत्तारि-पंचचोदस० । णवरि तिरिक्खगदि-तिरिक्खाणु०-उज्जो० जह मज. एक-बे-तिरिण-चत्तारि-पंचचौदस० । सत्तमाए इत्थि-णस०-पंचसंठा०पंचसंघ०-अप्पसत्थ०-दूभग-दुस्सर-प्रणादें जह० अज० छच्चोंदस० । तिरिभङ्ग उत्कृष्टके समान है । इसी प्रकार इन चार प्रकृतियोंकी मुख्यतासे स्पर्शन सर्वत्र जानना चाहिए। तिर्यञ्चायु और सूक्ष्म इनके जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यायुकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नरकगति, देवगति, नरकगत्यानपर्वी, और देतगत्यानुपूर्वी इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। एकेन्द्रिय जाति और स्थावर इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिक आङ्गोपाङ्गकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अजघन्य स्थतिके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तीर्थङ्कर प्रकृतिकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। ५०४ नारकियोंमें दो आयु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पहिली पृथ्वीमें स्पर्शन क्षेत्रके समान है। दूसरीसे लेकर छटवीं तक पाँच पृथिवियोंमें तिर्यञ्चायु, मनुष्यगति चार और तीर्थकर प्रकृतिका भङ्ग क्षेत्रके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवों का के समान है। अजघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंने क्रमसे कछ कम एक बटे चौदह राज़, कुछ कम दो बटे चौदह राजु, कुछ कम तीन बटे चौदह राजू, कुछ कम चार बटे चौदह राजु और कुछ कम पाँच बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और उद्योतकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवों ने क्रमसे कुछ कम एक बटे चौदह राजू, कुछ कम दो बटे चौदह राजू, कुछ कम तीन बटे चौदह राजू, कुछ कम चार बटे चौदह राजु और कुछ कम पाँच बटे चौदह राज़ क्षेत्र का स्पर्शन किया है। सातवीं पृथिवीमें स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेय इनकी जघन्य और अजधन्य स्थिति के बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तिर्यश्वायु और मनुष्यगति त्रिकका भङ्ग क्षेत्र के समान है । शेष For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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