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________________ २३८ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे जह सत्तचों । अज० सव्वलो। उज्जो०-बादर-जसगि० जह० अज० खे। बादरपुढवि०-पाउ०-तेउ०-वाउ० थावरपगदीणं जह० लोग० असंखेंज्ज० । अज. सव्वलो० । एइंदिय०-थावर० पुढविभंगो । उज्जो०-बादर-जसगि० तिरिक्ख०अपजत्तभंगो। सेसाणं जह० अज० खेत्तमंगो। बादरपुढवि०-आउ० तेउ०-बाउ०अपजत्त० थावरपगदीणं जह० अज० खें। एइंदि०-उज्जो०-थावर०-बादर०-जसगि० बादरपुढविभंगो । सुहुम० जह० अज० खेतं । सेसाणं पि खेचमंगो। ५१२. वणप्फदि-णियोदेसु तिरिक्खायु-सुहुम० जह० अज० सव्वलो० । एइंदि०उज्जो०-थावर-बादर-जसगि० पुढविभंगो। सेसाणं खेत्तभंगो । णवरि मणुसायु० तिरिक्खोघं । बादरवणफदि-णियोद-पज्जन-अपज्जना० बादरपुढविप्रपज्जतभंगो। बादरवणप्फदिपत्ते० बादरपुढविभंगो । सबसुहुमाणं खें। पवरि मणुसायु० एहदियभंगो । णवरि वाऊणं जम्हि लोग० असंखें तम्हि लोगस्स संखेन्जदिभागं कादव्वं । ५१३. पंचिंदिय-तस०२ एइंदिय-थावर' • जह० सत्तचों । अज० अट्ठचौद्द० किया है तथा अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रिय जाति और स्थावर इनकी जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य स्थिति के बन्धक जीवों ने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। उद्योत, बादर और यशःकीर्ति इनकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । बादर पृथ्वीकायिक, बादर जलकायिक, बादर अग्निकायिक और बादर वायुकायिक जीवोंमें स्थावर प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्र का स्पर्शन किया है। एकेन्द्रिय जाति और स्थावर इनका भङ्ग पृथ्वीकायिक जीवोंके समान है । उद्योत, बादर और यशःकीर्ति इनका भङ्ग तिर्यञ्च अपर्याप्तकों के समान है । शेष प्रकृतियों की जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पशन क्षेत्रके समान है। बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त, बादर जलकायिक अपर्याप्त, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त और बादर वायुकायिक अपर्याप्त जीवोंमें स्थावर प्रकृतियों की जघन्य और अजयन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। एकेन्द्रिय जाति, उद्योत, स्थावर, बादर, और यश कीर्ति इनका भङ्ग बादर पृथ्वीकायिक जीवोंके समान है । सूक्ष्म प्रकृतिको जघन्य और अजघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है। शेष प्रकृतियोंका भी स्पर्शन क्षेत्रके समान है। - ५१२. वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंमें तियेचायु और सक्ष्म इनकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। एकेन्द्रियजाति, उद्योत, स्थावर, बादर और यशःकीर्तिका भङ्ग पृथ्वीकायिक जीवोंके समान है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग क्षेत्र के समान है । इतनी विशेषता है कि मनुष्यायुका भङ्ग समान्य तियञ्चों के समान है । बादर वनस्पतिकायिक और निगोद तथा इनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंमें बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त जीवोंके समान भङ्ग है। बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंमें बादर पृथ्वीकायिक जीवोंके समान भङ्ग है । सब सूक्ष्मोंका भङ्ग क्षेत्र के समान है । इतनी विशेषता है कि मनुष्यायु का भङ्ग एकेन्द्रियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि वायुकायिक जीवोंका जहाँपर लोकका असंख्यातवाँ भाग प्रमाण स्पर्शन कहा है,वहाँ पर लोकका संख्यातवाँ भाग प्रमाण स्पशन कहना चाहि ५१३. पञ्चेन्द्रियद्विक और त्रसद्विक जीवोंमें एकेन्द्रिय और स्थावर इनकी जघन्य स्थिति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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