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________________ २१६ महाबंधे हिदिबंधाहियारे बादरएइंदि०-पज्जत्तापज्जत्त० । थावरपगदीणं च एवं चेव । तिरिक्खायु०-तसपमदीणं च ज. अज. लोग० संखेज्ज० । मणुसायु-मणुसगदिदुग० दो पदा लोग० असंखेज०। सव्वसुणुपाणं मणुसायु० अोघं । सेसाणं सव्वपगदीणं ज० अज सबलो। ४७६ पुढवि०--प्राउ-तेउ०--वाउ० तिरिक्ख-मणुसायु० ओघं । सेसाणं ज. लो० असं० । अज० सव्वलो० । बादरपुढवि०-आउ०-तेउ०-बाउ० थावरपगदीणं ज० लो० असंखें । अज० सव्वलो० । सेसाणं ज० अज० लोग० असंखे । बादरपुढवि०. पाउ०--तेउ०--वाउ०पजत्त० विगलि दियभंगो। बादरपुढवि०--आउ०--तेउ० --वाउ०. अपज्जत्त० थावरपगदीणं जह० लोग० असंखे० । अज० सव्वलो० । दोश्रायु०. तसपगदीणं जह० अज० लोग० असंखें। सुहुमं दो वि सव्वलोगे। णवरि वाऊणं सव्वत्थ जह० लो० असंखें तम्हि लोगस्स संखेजदिमागं कादव्वं । वणफदिणियोदाणं दोआयु०-सुहुमणाम. ओघ । सेसाणं ज. लो० असंखेज० । अज० लोक है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । इसीप्रकार एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय और इनके पर्याप्त-अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए। स्थावर प्रकृतियोंका क्षेत्र इसी प्रकार है। तियेच्चायु और त्रस प्रकृतियों की जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण है। मनुष्यायु और मनुष्यगतिद्विक इनके दोनों ही पदोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। सब सूक्ष्म जीवोंके मनुष्यायुका भंग ओघके समान है। शेष सब प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है । ४७६. पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंमें तिर्यञ्चायु और मनुष्यायु का भंग श्रोधके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है और अजघन्य स्थिति के बन्धक जीवों का क्षेत्र सब लोक है। बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर अग्निकायिक और बादरवायुकायिक जीवोंमें स्थावर प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है । शेष प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवेंभाग प्रमाण है। बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त और बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंमें अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग विकलेन्द्रियोंके समान है । बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त, बादर जलकायिक अपर्याप्त, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त और बादर वायुकायिक अपर्याप्त जीवोंमें स्थावर प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है । दो आयु और त्रस प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । सूक्ष्मके दोनों ही पदवाले जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। इतनी विशेषता है कि वायुकायिक जीवोंके सर्वत्र जहाँ लोकका असंख्यातवां भाग क्षेत्र कहा है वहाँ लोकका संख्यातवाँ भाग क्षेत्र कहना चाहिए । वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंमें दो आयु और सक्ष्मनामकी अपेक्षा क्षेत्र ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है और अजघन्य स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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