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________________ १५४ महाबंधे ट्ठदिबंधाहियारे सगदि० सिया• संखेज्जगु ० | देवगदि ० ४ सिया० । तं तु । ३२५. इत्थवे ० - पुरिसवेदेसु सत्तणं कम्माणं पंचिदियभंगो । वरि कोधसंज० ज० हि०० तिरिणसंज० णि० बं० गि० जहएगा । एवं तिरिणसंजलपाणं । ३२६. सगे मोहणी ० इत्थिवेदभंगो । सेसं घं । अवगदवेदे ओघं । कोधादि०४ घं । णवरि विसेसो, कोधे कोधसंज० [ज० द्वि० बं०] तिरिणसंज० शि० बं० शि० जहण्णा । एवं तिरिणसंजलणारणं । माणे माणसंज० ज०ट्टि ०बं० दोरणं संजल० णि० बं० ०ि जहण्णा । एवं दोरणं संजलणाणं । मायाए मायासंज० ज० द्वि० वं लोभसंज० शि० बं० णि० जहरणा० । एवं लोभसंजल • । लोभे घं चेव । ३२७. मदि० - मुद० तिरिक्खोघं । विभंगे सत्तरणं कम्माणं रियोघं । गिरयग० ज० द्वि० बं० पंचिदि ० - वेडव्वि० - तेजा ० क ० - वेउव्वि० अंगो० वण्ण ०४ - अगु०४-तस०४नियमसे जघन्य संख्यातगुणी अधिक स्थितिका बन्धक होता है । देवगति चतुष्कका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् प्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और अजघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि जघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा श्रजघन्य एक समय अधिकसे लेकर पल्यका श्रसंख्यातवाँ भाग अधिकतक स्थितिका बन्धक होता है । ३२५. स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंमें सात कर्मोंका भङ्ग पञ्चेन्द्रियोंके समान है । इतनी विशेषता है कि क्रोध संज्वलनकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव तीन संज्वलनोंका नियमसे बन्धक होता है। जो नियमसे जघन्य स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार तीन संज्वलनों की मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । ३२६. नपुंसक वेदी जीवोंमें मोहनीयका भङ्ग स्त्रीवेदके समान है। तथा शेष कर्मोंका भङ्ग श्रोघके समान है। अपगतवेदी जीवोंमें श्रधके समान है । क्रोधादि चार कषायवाले जीवों में ओघके समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि क्रोधकषायवाले जीवोंमें क्रोध संज्वलन की जघन्य स्थितिका बन्धक जीव तीन संज्वलनोंका नियमसे बन्धक होता है । जो नियमसे जघन्य स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार तीन संज्वलनोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। मानकषायवाले जीवोंमें मान संज्वलनकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव दो संज्वलनोंका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे जघन्य स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार दो संज्वलनोंकी मुख्यता से सन्निकर्ष जानना चाहिए । माया कषायवाले जीवों में माया संज्वलनकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव लोभ संज्वलनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे जघन्य स्थितिका बन्धक होता है । इसीप्रकार लोभ संज्वलनकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । लोभकषायवाले जीवोंमें सन्निकर्ष श्रधके समान ही है । ३२७. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें सन्निकर्ष सामान्य तिर्यञ्चों के समान है । विभङ्गज्ञान में सात कर्मोंका भङ्ग सामान्य नारकियोंके समान है । नरकगतिकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव पश्ञ्चेन्द्रियजाति, वैक्रियिकशरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर वैक्रियिकश्राङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क और निर्माण इनका For Private & Personal Use Only • Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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