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जहण्णसामित्तपरूवणा आयु० सएिणस्स वा असएिणस्स वा [पज्जत्तस्स। गवुस सणिणस्स वा असएिणस्स वा ] पज्जत्तस्स वा अपज्जत्तस्स वा । एवं कोधमाण-माय ।
६३. विभंगे सत्तएणं कम्माणं जह• हिदि. कस्स ? अण्ण. मणुसस्स संजमाभिमुहस्स सागारजागारसव्वविसुद्धस्स जह• हिदि० वट्टमारणयस्स । प्रायु० जह० हिदि० कस्स ? अण्ण तिरिक्खस्स वा मणुसस्स वा सागारजागारसंकिलि. जह• आबा० ।
६४. सामाइ०-छेदोव० सत्तएणं कम्माणं जह• हिदि० कस्स ? अण्ण अणियट्टिखवगस्स चरिमजह• हिदि० वट्टमा० । आयु० जह• हिदि. पमत्तसंजदस्स तप्पागोग्गसंकिलि । परिहारे सत्तएणं कम्माणं जहरू हिदि. अप्पमत्त. सबविसुद्धस्स । आयु० जह• हिदि. आहारकायजोगिभंगो । सुहुमसंपराइ छएणं कम्माणं अोघं । संजदासंजद सत्तएणं क जह• हिदि० कस्स ? अएण. मणुसस्स संजमाभिमुहस्स सागारजागारसव्वविसुद्धस्स । आयु० दुगदियस्स तप्पाअोग्गसंकिलि।
६५. तेउले-पम्मले० सत्तएणं क. जह• हिदि. कस्स ? अण्ण. अप्पमत्तइतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदमें जो संशी हो, असंशी हो और पर्याप्त हो वह आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है । नपुंसक वेदमें संज्ञी हो, असंही हो, पर्याप्त हो या अपर्याप्त हो,वह आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार क्रोध, मान और माया कषायमें भी जानना चाहिए।
६३. विभङ्गशानमें सात कौके जघन्य स्थितिबन्धको स्वामी कौन है ? जो अन्यतर मनुष्य संयमके अभिमुख है, साकार जागृत है, सर्वविशुद्ध है और जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है,वह सात कर्मोके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर तिर्यञ्च या मनुष्य साकार है, जागृत है, संक्लेश परिणामवाला है और जघन्य आबाधाके साथ जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है, वह आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है।
६४. सामायिक और छेदोपस्थापना संयममें सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर अनिवृत्तिक्षपक अन्तिम जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है, वह सात कौंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामो कौन है ? जो प्रमत्तसंयत जीव तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है,वह आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। परिहारविशुद्धिसंयममें सात कमौके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो अप्रमत्तसंयत जीव सर्वविशुद्ध है, वह सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी आहारक काययोगीके समान है। सूक्ष्मसाम्पराय संयममें छह कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी अोधके समान है। संयतासंयतों में सात कर्मोंके जघन्य स्थितिवन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर मनुष्य संयमके अभिमुख है, साकार जागृत है और सर्वविशुद्ध है,वह सात कर्मोके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो दो गतिका जीव तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है,वह आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है।
६५. पीतलेश्या और पद्मलेश्यामें सात कमौके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? १. आयु. संकिलिहस्स वा असणिणस्स इति पाठः ।
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