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________________ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे संजदस्स सागारजागारसव्व विसुद्धस्स । अथवा दसणमोहरखवगस्स से काले कदकरणिज्जो होहिदि त्ति । आयुगस्स जह• हिदि० कस्स ? अण्ण० देवस्स मिच्छादिहिस्स तप्पाअोग्गसंकिलिट्ठस्स जह• आवाधा. जह• हिदि वट्टमा० । ६६. वेदगसम्मा० सत्तगणं क० तेउले भंगो। आयु० देवणेरइयस्स तप्पाओगस्स संकिलिट्ठस्स । उवसमस० छएणं क. जह हिदि० कस्स ? अण्ण. सुहमसंपराइग० चरिमे जह• हिदि० वट्टमा० । मोहणी० जह• ट्ठिदि० कस्स ? अण्ण. अणियट्टिउवसमस्स चरिमे जह• हिदि० वट्टमा० । सासणे सत्तएणं क. जह हिदि० कस्स ? अण्ण. चदुगदियस्स सव्वविसुद्धस्स जह० हिदि० वट्टमा० । अथवा संजमादो परिवदमाणस्स' । आयु० जह• हिदि० कस्स ? अएण• चदुगदियस्स तप्पाओग्गसंकिलि० जह• हिदि० वट्टमा० । सम्मामिछा० सत्तएणं क० जह• हिदि. कस्स ? अण्ण. सागारजागारसव्वविसुद्धस्स से काले सम्मत्तं पडिवज्जदि त्ति । एवं बंधसामित्तं समत्तं । जो अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव साकार जागृत है और सर्वविशुद्ध है वह सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। अथवा जो दर्शनमोहकाक्षपक जीव तदनन्तर समयमें कृतकृत्यवेदकसम्यग्दृष्टि होगा,वह सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर देव मिथ्यादृष्टि है, तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है और जघन्य आबाधाके साथ जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है,वह आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। ६६. वेदकसम्यग्दृष्टियों में सात कौके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी पीतलेश्याके समान है। आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो देव और नारकी जीव तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है,वह आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। उपशम. सम्यग्दृष्टियोंमें छह कौके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर सूक्ष्मसाम्परायिक जीव अन्तिम समयमें जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है,वह छह कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। मोहनीय कर्मके जघन्य स्थितिबन्धका खामी कौन है ? जो अन्यतर अनिवृत्ति उपशामक जीव अन्तिम समयमें जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है वह मोहनीयकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। सासादनसम्यक्त्वमें सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है? जो अन्यतर चार गतिका जीव सर्वविशद्ध है और जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है,वह सात कोके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। अथवा संयमसे गिरकर जो सासादनसम्यग्दृष्टि हुआ है,वह सात कौंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है? जो अन्यतरं चार गतिका जीव तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है और आयुकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है। वह आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। सम्यग मिथ्यादृष्टियों सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर साकार जागृत है, सर्वविशुद्ध है और तदनन्तर समयमें सम्यक्त्वको प्राप्त होगा,वह सात कौके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। १. मूलप्रतौ-माणस्स । श्रायुः जह. हिदि० वट्टमा० । अथवा संजमादो परिवदमाणस्स। श्रायु० जह. हिदि० कस्स ? अण्ण० चदुगदियस्स तप्पाश्रोग्गसंकिलि० । सम्मामिच्छा० इति पादः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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