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________________ ४४ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे ६०. बेइंदि०-तेइंदि०-चदुरिंदि० सत्तएणं क. जह• हिदि० कस्स ? अएण पज्जत्तस्स सागारजागारसव्वविसुद्धस्स जह• हिदि० वट्ट । आयु० जह• हिदि. कस्स ? अण्ण पज्जत्तस्सं वा अपज्जत्तस्स वा तप्पाओग्गसंकिलि जह० श्रावा. जह हिदि० वट्ट । एवं तेसिं चेव पज्जत्तापज्जत्ता । 'तसअपज्जत्ता० बेइंदियअपज्जत्तभंगो। ६१. वेउव्वियका० सत्तएणं कम्माणं जह• हिदि० कस्स ? अण्णद० देवणेरइगस्स सम्मादिहि. सागारजागारसव्वविसुद्धस्स जह• हिदि० वट्टमाणयस्स । आयु० जह• हिदि० कस्स ? अएणद० देवणेरइगस्स तप्पाअोग्गसंकि० मिच्छादि । एवं वेउवियमिस्स । वरि सत्तएणं कम्माणं से काले सरीरसज्जत्ती गाहिदित्ति । आहार-आहारमि० सत्तएणं क• जह• हिदि० कस्स ? अण्ण. पमत्तस्स सागारजागारसव्वविसुद्धस्स । आहारमिस्से से काले सरीरपज्जत्ती गाहिदि त्ति । आयु० जह• हिदि० कस्स० ? अण्ण तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स । ६२. इत्थि-पुरिस-णवंस० सत्तएणं कम्माणं जह• हिदि० कस्स ? अएण. अणियट्टिखवगस्स जह• हिदि० वट्टमाणयस्स । आयु० अोघं । णवरि इत्थि-पुरिस० ६०. द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर अपर्याप्त जीव साकार जागृत है, सर्वविशुद्ध है और जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है, वह सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है? जो अन्यतर जीव पर्याप्त है या अपर्याप्त है, तत्प्रायोग्य संकेश परिणामवाला है और जघन्य आवाधाके साथ जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है,वह आयु कर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार इन तीनोंमें पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए । तथा त्रस अपर्याप्तकोंमें द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है। ६१. वैक्रियिककाययोगमें सात कौके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव और नारकी जीव जो कि सम्यग्दृष्टि है, साकार जागृत है, सर्वविशुद्ध है और जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है, वह सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है । आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव और नारकी जीव जो कि तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है और मिथ्यादृष्टि है, वह आयु कर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसमें जो तदनन्तर समयमें शरीर पर्याप्तिको पूर्ण करेगा,वह सात कर्मोंके जघन्य स्थितिवन्धका स्वामी होता है। आहारककाययोग और आहारक मिश्रकाययोगमें सात कौके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है। अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव जो साकार जागृत है और सर्वविशुद्ध है वह सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामो है। आहारकमिश्र काययोगमें जो तदनन्तर समयमें शरीर पर्याप्तिको पूर्ण करेगा वह सात कौके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। श्रायुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर तत्प्रायोग्य संक्लेशपरिणामवाला जीव आयुकर्मके जघन्य स्थितिवन्धका स्वामी है। ६२. स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेदमें सात कर्मों के जघन्य स्थितिवन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर अनिवृत्तिक्षपक जीव जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है,वह सात कौके जघन्य स्थितवन्धका स्वामी है । आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी अोधके समान है। १. मूलप्रतौ तसपजत्ता० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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