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________________ जहण्णसामित्तपरूवणा ४३ ५८. तिरिक्खेसु सत्तएणं कम्माणं जह• हिदि० कस्स ? अण्ण० बादरएइंदि० पजत्त० सव्वविसुद्धस्स जह० हिदि० वट्टमा० । आयु० ओघं । एवं सव्वएइंदि०-सव्वपंचकाय-ओरालियमि०-कम्मइग-मदि०-सुद-असंज-किरण-णीलकाउ०-अभवसि -मिच्छादि-असएिण-अणाहारग त्ति । ५६. पंचिंदियतिरिक्व०३ सत्तएणं क. जह• हिदि. कस्स ? अण्ण. असएिणस्स सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तगदस्स सागारजागारसव्वविसुद्धस्स जह हिदि० वट्टमाणयस्स। आयुगस्स जह• हिदि० कस्स ? अण्ण. सएिणस्स वा असएिणस्स वा पज्जत्तस्स वा अपज्जत्तस्स वा सागारजागार-तप्पाअोग्गसंकिलि. जह• हिदि० वट्टमाणयस्स । एवं पंचिंदियतिरिक्वअपज्ज-पंचिंदियअपज्जत्ता त्ति । चाहिये, इसलिये इन मार्गणाओंमें सर्व विशुद्ध परिणामवाले सम्यग्दृष्टिको सात कौके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कहा है। अनुदिशसे लेकर आगे सब देव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं, इसलिये वहाँ तो सम्यग्दृष्टि तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामोंके होनेपर आयु कर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी होता है, पर यहाँ जो अन्य मार्गणाएँ गिनाई हैं, उनमें आयु कर्मके जघन्य स्थितिबन्धकी योग्यता मिथ्यादृष्टिके ही पाई जाती है। क्यों कि यहाँ मिथ्यादृष्टिके आयु कर्मके जघन्य स्थितिबन्धके योग्य संक्लेश परिणाम हो सकते हैं;उतने अन्य गुणस्थानवालके नहीं। ५८. तिर्यञ्चों में सात कर्मोके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो बादर एकेन्द्रिय जीव पर्याप्त है, सर्व विशुद्ध है और जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है, वह सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। आयु कर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी ओघके समान है। इसी प्रकार सब एकेन्द्रिय, सब पाँचों स्थावरकाय, औदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, मत्यज्ञानी, श्रुताशानी, असंयत, कृष्णलेश्यावाले,नीललेश्यावाले, कापोत लेश्यावाले, अभव्यसिद्धिक, मिथ्यादृष्टि, असंही और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये। विशेषार्थ-तिर्यंचों में सात कर्मोंका सबसे कम स्थितिबन्ध बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके होता है। इसीसे यहाँ तिर्यञ्चगतिमें सात कौके जघन्य स्थिति बन्धके स्वामीका कथन उनकी मुख्यतासे किया है। यहाँ अन्य जितनी मार्गणाएँ गिनाई हैं, उनमें प्रायः यह स्थितिबन्ध सम्भव होनेसे उनका कथन ओघ तिर्यंचोंके समान करनेका निर्देश किया है। इन सव मार्गणाओंमें आयु कर्मका नुल्लक भव ग्रहणप्रमाण जघन्य स्थितिबन्ध सम्भव है, इसलिये आयु कर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामीका कथन ओघके समान किया है। ५९. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें सात कौके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो असंही जीव सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त है, साकार जागृत है, सर्वविशुद्ध है और जघन्य स्थितिका बन्ध कर रहा है,वह सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। आयु कर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर संशी या असंज्ञी जीव जो कि पर्याप्त हो या अपर्याप्त हो, साकार जागृत हो, तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला हो और जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा हो वह आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तके जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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