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श्रद्धाच्छेदपरूवणा ३७. सामाइय-च्छेदोवहावण तिषिण कम्माणं जह• मुहुत्तपुधत्तं । अंतो० आबा। [ आनाधृणि ] । वेदणीय-णामा-गोदाणं मासपुधत्तं । अंतो० आबा० । [आवाधृ०। ] मोह० ओघं । आयुग० जह• पलिदोवमपुधत्तं । अंतोमु आबाधा० । [ कम्महिदी कम्म० । ] सुहुमसंप• छएणं कम्माणं ओघं ।
३८. उवसमस० चदुएणं कम्माणं जह• [बे अंतोमुहु० ] अंतो. आबा । [आबाधू। ] वेदणी• जह• चउवीसं मुहुत्तं । अंतो० आवाधा० । [आबाधू ।] णामा-गोदाणं जह• सोलस मुहुत्तं । अंतो आवा० । [ श्राबाधू। ] एवं जहण्णो अद्धच्छेदो समत्तो।
___ एवं अद्धच्छेदो समत्तो ।
श्रेणीमें और आयु कर्मका मिथ्यात्व गुणस्थानमें होता है। यहाँ भी विकल्पान्तरके सम्बन्धमें वही बात जाननी चाहिए, जिसका निर्देश पुरुषवेदके समय कर आये हैं।
३७. सामायिक और छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत जीवोंके तीन कर्मो का जघन्य स्थितिबन्ध मुहूर्तपृथक्त्वप्रमाण है, अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और पाबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध मासपृथक्त्वप्रमाण है, अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषक है। मोहनीय कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध, आवाधा और निषेक रचना ओघके समान है।
कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध पल्यपृथक्त्वप्रमाण है, अन्तमहर्तप्रमाण आबाधा है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। सूक्ष्मसाम्पराय संयतके छह कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध, आबाधा और निषेक रचना ओघके समान है।
विशेषार्थ-उक्त दोनों संयम छठवें गुणस्थानसे लेकर नौवें गुणस्थान तक होते हैं। इसलिये आपकश्रणीके नौवें गुणस्थानमें जहाँ जिस कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध होता है, वहाँ इनमें जघन्य स्थितिवन्ध जानना चाहिये। आयुकर्मका पल्योपमपृथक्त्वप्रमाण जघन्य स्थितिबन्ध प्रमत्तसंयतके संक्लेश परिणामोंकी प्रचुरताके होनेपर होता है। ओघसे छह कर्मों का जघन्य स्थितिबन्ध आदि क्षपक सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानमें ही प्राप्त होता है। इसीसे सूक्ष्मसाम्परायसंयतके छह कर्मोका जघन्य स्थितिबन्ध आदि ओघके समान कहा है।
३८. उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके चार कर्मों का जघन्य स्थितिवन्ध दो अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है, अन्तमुहर्तप्रमाण आबाधा है और आबाधाले न्यन कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषक है। वेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध चौबीस मुहूर्त है, अन्तर्मुहर्तप्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यन कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। नाम और गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध सोलह मुहूर्त है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है।
विशेषार्थ-उपशम सम्यग्दृष्टिके यह जघन्य स्थितिबन्ध उपशमश्रेणीमें प्राप्त होता है जो क्षपक श्रेणिमें प्राप्त हुए जघन्य स्थितिबन्धसे दूना होता है।
इस प्रकार जघन्य अद्धाच्छेद समाप्त हुआ।
इस प्रकार अद्धाच्छेद समाप्त हुआ।
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