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________________ महाबंधे ठ्ठिदिबंधाहियारे ३६. कोध- माण- माय० छणं कम्माणं संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । अंतोमु० आबा० । आबाधू० कम्महिदी कम्म० । मोहणीय० जह० द्विदिबं० कोधे वे मासा, माणे मासं, मायाए पक्खं । सव्वाणं अंतो० आबा० । आबाधू० । आयु० ओघं । अधवा को सत्तणं कम्मा पुरिसभंगो । वरि, मोह० जह० हिदिबं० बेमासं । अंतो० आबा० । आबाधू ० कम्मट्ठि ० | माणे तिरिएक० जह० द्विदिबं० वासपुधत्तं० | अंतो० आबा० | [आबाधूणिया कम्म० । ] वेदरणीय - गामा- गोदाणं जह० द्विदिबं० संखेज्जाणि वाससदाणि । अंतोमु० आबा० । आाबाधू० । मोहरणीय० जह० मासं । अंतो० आबाधा० । [आबाधूणिया कम्म० ] | मायाए तिए कम्मारणं जह० मासपुत्तं । तो० आवाधा० । [आाबाधूणिया कम्म० ।] वेदरणीय- गामा-गोदाणं जह० - वासपुधत्तं । अंतो० आबाधा० । [आबाधूणिया कम्म० ।] मोहणी० जह० पक्खं । अंतो० आबा० । आबाधू० । २८ कर्मका इतना कम स्थिति बन्ध नहीं होता । यहाँ पुरुषवेदमें ' अथवा ' कहकर विकल्पान्तर की सूचना की है सो विचारकर इस कथनका सामंजस्य बिठला लेना चाहिए । दूसरे विकल्पद्वारा इसी बात की सूचना की है । इसीसे पुरुषवेद में वेदनीय, नाम और गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्ष प्रमाण तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायका जघन्य स्थिति बन्ध संख्यात सौ वर्ष प्रमाण कहा है। ३६. क्रोध, मान और माया कषायवाले जीवोंके छह कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्ष प्रमाण होता है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण श्राबाधा होती है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्म निषेक होता है। मोहनीय कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध क्रोधकषायवाले के दो महीना, मान कषायवालेके एक महीना और माया कषायवालेके एक पक्षप्रमाण होता है । सब कर्मों की अन्तर्मुहूर्त प्रमाण बाधा होती है और आबाधासे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक होता है । श्रायु कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध श्रोधके समान है । अथवा क्रोधकषायवालेके सात कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध पुरुष वेदवा लेके समान है । इतनी विशेषता है कि मोहनीय कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध दो महीना है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण बाधा है और बाधा से न्यून कर्म स्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है। मानकषायवा लेके तीन कर्मों का जघन्य स्थितिबन्ध वर्षपृथक्त्व प्रमाण है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और श्राबाधसे न्यून कर्म स्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यात वर्ष है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। मोहनीय कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध एक महीना है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण बाधा है और श्रबाधाले न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । माया कषायवालेके तीन कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध मासपृथक्त्वप्रमाण है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और आबाधा से न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध वर्ष - पृथक्त्वप्रमाण है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण श्राबाधा है और आबाधासे न्यन कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । मोहनीय कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध पक्ष प्रमाण है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और श्रावाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । विशेषार्थ - उक्त तीन कषायवाले जीवोंके सात कर्मों का जघन्य स्थितिबन्ध क्षपक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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