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________________ महाबंधे ट्ठिदिबंधा हियारे सव्व-गोसव्वबंधपरूवणा ३६. यो सो सव्वबंध [ गोसव्वबंधो] णाम तस्स इमो देिसो- ओघेण आदेसे य । तत्थ ओघेण खारणावरणीयस्स द्विदिबंधो किं सव्वबंधो गोसव्व बंधो ? सव्वबंधो वा गोसव्वबंधो वा । सव्वा द्विदी बंधदित्ति सव्वबंधो । तदो [ उणियं ] हिर्दि बंधदि ति गोसव्वबंधो । एवं सत्तणं कम्माणं । एवं आणाहारग त्ति दव्वं । ३० उक्कस्स-अणुक्कस्सबंध परूवणा ४०. यो सो उक्कस्सबंधो अणुवस्सबंधो णाम तस्स इमो पिदेसो - श्रघेण आदेसेय । तत्थ ओघेण खारणावरणीयस्स डिदिबंधो किं उक्कस्सबंधो अणुक्कस्सबंधो ? उक्कस्सबंधो वा अणुकस्सबंधो वा । सव्वुक्कस्सियं हिदि बंधदित्ति उक्कस्सबंधो । सर्वबन्ध नोसर्वबन्धप्ररूपणा ३९. जो सर्वबन्ध और नोसर्वबन्ध है उसका यह निर्देश है— श्रोघनिर्देश और आदेशनिर्देश । इनमेंसे ओघकी अपेक्षा ज्ञानवारणीयके स्थितिबन्धका क्या सर्वबन्ध होता है या नोसर्वबन्ध होता है ? सर्वबन्ध भी होता है और नोसर्वबन्ध भी होता है । सब स्थितियोंको बाँधता है, इसलिये सर्वबन्ध होता है और उससे न्यून स्थितियोंको बाँधता है, इसलिये नोसर्वबन्ध होता है। इसी प्रकार सात कर्मों का कथन करना चाहिए। इस प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिये । 1 विशेषार्थ - यहाँ ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों के स्थितिबन्धका सर्वबन्ध भी होता है और नोसर्वबन्ध भी होता है, यह बतलाया है। जब विवक्षित कर्मकी सब स्थितियोंका बन्ध होता है तब सर्वबन्ध होता है; श्रन्यथा नोसर्वबन्ध होता है । उदाहरणार्थ - श्रघसे ज्ञानावरणकी सब स्थितियाँ तीस कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण हैं । जब इन सब स्थितियोंका बन्ध होता है तब सर्वबन्ध कहलाता है और जब इससे न्यून बन्ध होता है तब नोसर्वबन्ध कहलाता है । इसी प्रकार अन्य सात कर्मोंकी अलग अलग सब स्थितियोंका विचार कर सर्वबन्ध और नोसर्वबन्धका कथन करना चाहिये । मार्गणाओं में विचार करते समय जिन मार्गणाओंमें यह श्रोघ प्ररूपणा घटित हो जाय, वहाँ ओघके समान जानना चाहिये और जिन मार्गाओं में ओघप्ररूपणाघटित न हो, वहाँ श्रादेशसे जहाँ जो उत्कृष्ट स्थिति हो उसे ध्यान में रखकर सर्वबन्ध और नोसर्वबन्धका विचार करना चाहिये । उदाहरणार्थ - चारों गति, पंचेन्द्रिय जाति, त्रसकाय, तीन योग, तीन वेद, चार कषाय, मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान, विभंगज्ञान, श्रसंयत, चतुदर्शन, श्रचक्षुदर्शन, कृष्णादि तीन लेश्या, भव्य, अभव्य, मिथ्यात्व संशी और आहारक इन मार्गणाओं में श्रोघके समान सर्वबन्ध और नोसर्वबन्ध होता है । तथा शेष मार्गणाओं में आदेशसे सर्वबन्ध और नोसर्वबन्ध घटित करना चाहिये । उत्कृष्ट-अनुत्कृष्टबन्धप्ररूपणा ४०. जो उत्कृष्टबन्ध और अनुत्कृष्टबन्ध है, उसका यह निर्देश हैं— श्रोध और आदेश । श्रघसे ज्ञानावरणीयके स्थितिबन्धका क्या उत्कृष्टबन्ध होता है या अनुत्कृष्टबन्ध ? उत्कृष्टबन्ध भी होता है और अनुत्कृष्टबन्ध भी । सबसे उत्कृष्ट स्थितिको बाँधता है, इसलिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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