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________________ महाबंधे ठिदिबंधाहियारे २६. इंदिre बादर - बादरपज्जत्तस्स सत्तरणं कम्माणं उक्क ० दिबंधो सागरोवमस्स तिणि सत्तभागा सत्त सत्तभागा बे सत्तभागा । अंतोमुहुत्तं बाधा । धूरिया कम्मी कम्मरिगो । आयुगस्स उक्कस्सट्ठिदिबंधो पुव्वकोडी | सत्त्वस्ससहस्साणि सादिरेयाणि आबाधा । कम्मट्ठिदी कम्मणि० । बादरएइंदियअपज्जत्त-मुहुमएइंदियपज्जत्त - अपज्जत्ताणं सत्तणं कम्माणं उक्क० द्विदिवं ० सागरोवमस्स तिरिण सत्तभागा सत्त सत्तभागा वे सत्तभागा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण ऊणिया । अंतोमुहुतं आबाधा | आबाधूणिया कम्मट्ठदी कम्म० । आयुगस्स उक्क० द्विदिबं० पुव्वकोडी । तोमुहुत्तं बाधा | कम्मदी सव्व पुढ• ० उ० तेउ०- वाड० - वरणप्फदि० - बादरवणप्फदिपत्तेगसरीर० दिगो । वरि आयु० उक्क० द्विदि० पुव्वकोडी | सत्तवस्ससहस्साणि सादि • वेससहस्सापि सादि० एक्करादिदिया० एक्कवस्ससहस्सा ० तिविस्ससहसारि सादि० वाधा । कम्म० कम्मणिसेगो । णिगोदजीवाणं सत्तणं कम्माणं पुढविकाइयभंगो | आयु० सव्वणियोदाणं सुहुमएइंदियभंगो । कम्म० 1 २० २६. एकेन्द्रियोंमें बादर और बादर पर्याप्त जीवोंके सात कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध एक सागरका तीन बटे सात भाग, सात बटे सात भाग और दो बटे सात भागप्रमाण होता है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण बाधा होती है और श्रावाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक होते हैं। आयुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पूर्वकोटिप्रमाण है, साधिक सात हजार वर्ष प्रमाण बाधा है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक हैं । बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके सात कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध एक सागरका पल्यका असंख्यातवाँ भाग कम तीन बटे सात भाग, सात बटे सात भाग और दो बटे सात भागप्रमाण है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है, और श्रावाधा न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक हैं। आयुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पूर्वकोटिप्रमाण है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आवाधा है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक हैं । सब पृथिवीकायिक, सब जलकायिक, सब अग्निकायिक, सब वायुकायिक, सब वनस्पतिकायिक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर जीवोंके सब कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध आदि एकेन्द्रियोंके समान है । इतनी विशेषता है कि आयुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पूर्वकोटिप्रमाण है, आबाधा क्रमसे साधिक सात हजार वर्ष, साधिक दो हजार वर्ष, एक दिनरात, एक हजार वर्ष और साधिक तीन हजार वर्ष प्रमाण है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक हैं । निगोद जीवोंके सात कमका स्थितिबन्ध आदि पृथिवीकायिक जीवोंके समान है। तथा सब निगोद जीवोंके कर्मका स्थितिबन्ध आदि सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंके समान है । विशेषार्थ - एकेन्द्रिय जीवोंके ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध एक सागरका तीन बटे सात भागप्रमाण होता है, मोहनीयका पूरा एक सागरप्रमाण होता है और नाम और गोत्रका एक सागरका दो बटे सात भागप्रमाण होता है । पर्याप्त एकेन्द्रियोंके और बादर पर्याप्त एकेन्द्रियोंके इन कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध इसी प्रकार होता है। शेष बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म पर्याप्त और सूक्ष्म अपर्याप्त केन्द्रियोंके इसमेंसे पल्यका असंख्यातवाँ भाग कम कर देनेपर उत्कृष्ट स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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