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________________ श्रद्धाच्छेदपरूवणा अद्धाच्छेदपरूवणा २४. अद्धाच्छेदो दुविधो-जहएणो उक्कस्सो च । उक्कस्सगे पगदं । दुविधा णिद्देसो-अोघेण आदेसेण य। तत्थ ओघेण पाणावरणीय-दसणावरणीय-वेदणीयअंतराइगाणं उक्कस्सो हिदिबंधो तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ'। तिषिण वस्ससहस्साणि आवाधा' । आवाधूणिया कम्मट्टिदी कम्मणिसेगो । मोहणीयस्स उक्कस्सो ट्ठिदिबंधो सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीओ। सत्तवस्सहस्साणि आवाधा। आवाधूणिया कम्मट्ठिदी कम्मणिसेगो । आयुगस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो तेत्तीसं सागरोवमाणि । पुवकोडितिभागं आवाधा। कम्महिदी कम्मणिसेत्रो' । णामागोदाणं उक्कस्सो हिदिवंधो वीसं सागरोवमकोडाकोडीअो । बेवस्ससहस्साणि आबाधा। आवाधुणिया कम्मट्ठिदी कम्मणिसेगो। एवमोघमंगो. सवणिरय-तिरिक्वं४-मणुस०३-देवो याव सहस्सार ति पंचिंदिय-तस०२-पंचमण-पंचवचि०-कायजोगि-ओरालियका०-वेउबियका-तिएिणवेद-चत्तारिकसा-मदि-सुद-विभंग-असंजद-चक्खुदं-अचक्खुदं-पंचले०-भवसि०-अब्भवसि-मिच्छादिहि-सएिण-आहारग त्ति । णवरि आयु० अन्तर और भाव। आगे इन चौबीस अनुयोगद्वारोंका आश्रय कर स्थितिबन्धका विचार करके पुनः उसका भुजगारबन्ध, पदनिक्षेप, वृद्धि, अध्यवसानसमुदाहार और जीवसमुदाहार इन द्वारा और इनके अवान्तर अनुयोगों द्वारा विचार किया गया है। अद्धाच्छेदप्ररूपणा २४. श्रद्धाच्छेद दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैप्रोध और आदेश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा शानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तीस कोडाकोड़ी सागर प्रमाण है। आबाधा तीन हजार वर्ष प्रमाण है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक हैं। मोहनीय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सत्तर कोडाकोड़ी सागरप्रमाण है। सात हजार वर्षप्रमाण आबाधा है और आवाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक हैं। आयुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तेतीस सागर है। पूर्वकोटिका तीसरा भागप्रमाण आबाधा है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक हैं। नाम और गोत्रकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध बीस कोडाकोड़ी सागरप्रमाण है, दो हजार वर्षप्रमाण आवाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषक हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सामान्य तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंच और पंचेन्द्रिय योनिनीतिर्यंच ये चार प्रकारके तिर्यंच, सामान्य मनुष्य, पर्याप्त मनुष्य और मनुष्यनी ये तीन प्रकारके मनुष्य; देव, सहस्रार कल्पतकके देव, पंचेन्द्रियद्विक, प्रसद्विक, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, वैक्रियिक काययोगी, तीनों वेदवाले, चारों कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताझानी, विभंगशानी, असंयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, पांच लेश्यावाले, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक, मिथ्यादृष्टि, संशी और आहारक जीवोंके जानना चाहिये। किन्तु आयुकर्मके विषयमें १. जीव० चू० ६ । गो० क०, गा० १२७ । २. गो० क०, गा० १५६ । ३. गो० क०, गा० १६० । ४. गो० क०, गा० १५७ । ५. गो.क०, गा० १५८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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