SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अप्पाबहुगपरूवणी १५ १६. पंचिंदियसएिण-असएिण-पज्जत्ताणं सव्वत्थोवा' आयुगस्स जहएिणया आबाधा । जहएणो हिदिबंधो संखेज्जगुणो। आबाधाहाणाणि संखेज्जगुणाणि । उक्कस्सिया आबाधा विसेसाधिया। णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि असंखेज्जगुणाणि। एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरं असंखेज्जगुणं । हिदिवंधहाणाणि असंखेज्जगुणाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। २०. पंचिंदियाणं असएणीणं पज्जत्तापज्जत्ताणं चरिंदिय-तेइंदि-बेइंदि० पज्जत्तापज्जत्ताणं सत्तणं कम्माणं आयुगवज्जाणं आवाधाहाणाणि आबाधाखंडयाणि च दो वि तुल्लाणि थोवाणि । जहरिणया आवाधा संखेज्जगुणा । उक्कस्सिया आवाधा विसे । णाणापदेसगु० असंखे गु० । एयपदेसगु० असं गु० । एयं आबाधाखंडयं असं गु० । हिदिबंधट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । जहएणो हिदिबंधो संखेज्जगुणो । उक्क हिदिबं० विसे ।। २१. बादरएइंदिय-सुहुमएइंदिय-पज्जत्तापज्जत्ताणं सत्तणं कम्माणं आयुगवज्जाणं आवाधाट्ठाणाणि आबाधाखंडयाणि च दो वि तुल्लाणि थोवाणि । जहरिण १९. पंचेन्द्रिय संशी पर्याप्त और पंचेन्द्रिय असंही पर्याप्त जीवोंके आयुकर्मकी जघन्य आवाधा सबसे स्तोक है। इससे जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे आबाधास्थान संख्यातगुणे हैं। इनसे उत्कृष्ट आवाधा विशेष अधिक है। इससे नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणे हैं। इनसे एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है। इससे स्थितिबन्धस्थान असंख्यातगुणे हैं। इनसे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। २०. पंचेन्द्रिय असंशी पर्याप्त, पंचेन्द्रिय असंज्ञी अपर्याप्त, चतुरिन्द्रिय पर्याप्त, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त, श्रीन्द्रिय पर्याप्त, त्रीन्द्रिय अपर्याप्त, द्वीन्द्रिय पर्याप्त और द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके आयुके सिवा सात कौके पाबाधास्थान और आवाधाकाण्डक ये दोनों तुल्य होकर सबसे स्तोक हैं। इनसे जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है। इससे उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। इससे नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणे हैं । इनसे एकप्रदेश गुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है। इससे एक आबाघाकाण्डक असंख्यातगुणा है। इससे स्थितिबन्धस्थान असंख्यातगुणे हैं । इनसे जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे उत्कृष्ट स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। विशेषार्थ-यहाँ स्थितिबन्धस्थान पल्यके संख्यातवें भागप्रमाण हैं और जघन्य स्थिति पल्यका संख्यातवाँ भाग कम अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । इसीसे यहाँ स्थितिस्थानोंके प्रमाणसे जघन्य स्थितिको संख्यातगुणा कहा है। शेष कथन सुगम है। २१. बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके आयुकर्मके सिवा सात कमौके पाबाधास्थान और आवाधाकाण्डक ये दोनों तुल्य होकर स्तोक हैं । इनसे जघन्य अावाधा असंख्यातगुणी है। इससे १. पञ्चसंबन्धनक०,गा० १०३-१०४ । २. मूलप्रतौ पंचिंदि०.............. "याणं असंखेज्ज ....... . 'एइंदि० बेइंदि० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy