SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ महावंधे ट्ठिदिबंधाहियारे संयतकी अपेक्षा जघन्य स्थितिका निर्देश नहीं किया है । ज्ञानावरणकी जघन्य स्थिति संयतके होती है और सबसे जघन्य आवाधा उसीकी हो सकती है। इसलिये यह प्रश्न होता है कि इस अल्पबहुत्वमें यह जघन्य आवाधा किसकी ली गई है। आगे उत्तरप्रकृति स्थितिबन्धमें अल्पबहुत्वका निर्देश करते हुए कहा है कि 'सबसे स्तोक जघन्य आबाधा है और उससे जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे वहाँ तो जघन्य अाबाधा किसकी ली गई है इसका पता लग जाता है,पर यहाँका प्रश्न इस दृष्टिसे विचारणीय रहता है। यहाँ शानाबरणके अल्पबहुत्वको कहनेके बाद एवं छण्णं कम्माणं' ऐसा कहा है। संयतके क्षपक सूक्ष्मसाम्परायके अन्तिम समयमें छह कर्मोंका बन्ध तो होता है पर मोहनीयका नहीं होता। इसलिये इस निर्देशसे यही ज्ञात होता है कि इस अल्पबहुत्वमें संयतकी जघन्य स्थितिका कथन अविवक्षित रहा है। मालूम पड़ता है कि यहाँ मिथ्यादृष्टिको जघन्य स्थितिकी आबाधा ली गई है, क्योंकि इस अल्पबहुत्वमें इस स्थितिका ग्रहण भी किया है। यह सबसे स्तोक होती है। श्राबाधा कुल विकल्प आवाधास्थान कहलाते हैं और इतने ही आवाधाकाण्डक होते हैं। शानावरणकी उत्कृष्ट आबाधा तीन हजार वर्ष से जघन्य आवाधा अन्तमुहूर्तको कम कर एक मिला देनेपर कुल आबाधाके विकल्प होते हैं । ये विकल्प अन्तर्मुहूर्तप्रमाण जघन्य आबाधासे संख्यातगुण होनेके कारण आबाधास्थान ओर पाबाधाकाण्डकोको जघन्य आवाधासे संख्यातगुणा कहा है । ज्ञानावरणकी उत्कृष्ट आबाधा पूरी तीन हजार वर्ष प्रमाण है जो आबाधास्थानों में अन्तमुहूर्त के जितने समय हों, एक कम उतने समयोंके मिलानेपर प्राप्त होती है। इसीसे उक्त दोनों पदोंसे उत्कृष्ट श्राबाधाको विशेष अधिक कहा है। नानाप्रदेशद्विगुणहानिस्थानान्तरोंका प्रमाण पहले पल्यके प्रथम वर्गमूलके असंख्यातवें भागप्रमाण बतला आये हैं। यह प्रमाण तीन हजार वर्षके समयोंसे असंख्यातगुणा है। इसीसे उत्कृष्ट आबाधाके प्रमाणसे यह प्रमाण असंख्यातगुणा कहा है । एकप्रदेशगुण हानिस्थानान्तरका प्रमाण पहले पल्यके असंख्यात प्रथम वर्गमूलोके बराबर बतला पाये है। यह प्रमाण नानाप्रदेशद्विगुणहानिस्थानान्तरके प्रमाणसे असंख्यातगुणा है.यह स्पष्ट ही है। इसीसे नानाप्रदेशद्विगुणहानिस्थानान्तरके प्रमाणसे इसे असंख्यातगुणा कहा है । एक आवाधाकाण्डकका प्रमाण पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है यह एकप्रदेशद्विगुणहानिस्थानान्तरसे असंख्यातगुणा होनेके कारण असंख्यातगुणा कहा गया है। मिथ्यादृष्टिके शानावरणकर्मकी जघन्य स्थिति अन्तःकोटाकोटिसागर प्रमाण होती है जो एक आवाधाकाण्डकके प्रमाणसे असंख्यातगुणी होती है। इसीसे आबाधाकाण्डकसे जघन्य स्थितिको असंख्यातगुणी कहा है। उत्कृष्टस्थिति तीस कोटाकोटिसागरमेंसे अन्तःकोटाकोटिसागरको कम करके जो लब्ध आवे उसमें एक मिलानेपर स्थितिस्थान प्राप्त होते हैं। यतः ये जघन्य स्थितिके प्रमाणसे संख्यातगुणे हैं,अतः जघन्य स्थितिके प्रमाणसे स्थितिस्थानोंका प्रमाण संख्यातगुणा कहा है। उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पूरा तोस कोटाकोटिके समय प्रमाण होता है और स्थितिस्थान इसमेंसे अन्तःकोटाकोटिके समयोंको घटाकर एक मिलानेपर प्राप्त होते हैं। स्पष्ट है कि स्थितिस्थानके प्रमाणसे उत्कृष्ट स्थिति विशेष अधिक है। इसीसे स्थितिस्थानके प्रमाणसे उत्कृष्ट स्थितिका प्रमाण विशेष अधिक कहा है। यह संक्षी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकी मुख्यतासे अल्पबहुत्वका खुलासा है। मात्र इसमें इन्हींके अपर्याप्तकी अपेक्षा प्राप्त होनेवाला अल्पबहुत्व गर्भित है। आयुके सिवा दर्शनावरण आदि शेष छह कमौके उक्त सब पदोंका अल्पबहुत्व इसी प्रकार घटित कर लेना चाहिये, क्योंकि उनके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध आदिमें अन्तरके होनेपर भी उससे अल्पबहुत्वमें कोई अन्तर नहीं आता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy