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________________ जहडिदिबंध कालपरूवणा ३५१ १८८. मणुस ०३ खत्रगपगदीणं धुविगाणं जह० हिदि० ओघं । अज० हिदि० जह० एग०, उक्क० तिरिण पलि० पुव्त्रकोडिपुधत्तं । पंचदंस० - वारसक ० -भयदुगु० - तेजा० क० - वरण ०४ - अगुरु० - उप० - णिमि० जह० हिदि० जह० एग, उक्क० बेसम० । अज० हिदि० जह० एग०, उक्क० उक्कस्तभंगो । सादावे०आहार - आहार० अंगो० -जस० जह० ज० ओघं । असादा० - इत्थि० - एस०हस्स-रदि- अरदि-सोग - तिरिक्खग०- मणुसग ० चदुजादि - ओरालि० अंगो० - इस्संघ०दो० आदाउज्जो ० अप्पसत्थवि ० थावरादि ० ४ - थिराथिर- सुभासुभ- दूभग--दुस्सर-अणादे० - अजस० णीचागो० जह० द्विदि० जह० एग०, उक्क० वेसमयं । अज० हिदि ० उक्करसभंगो । मिच्छ० जह० द्विदि० जह० एग०, उक्क० बेसम० । अज० द्विदि० जह० सुद्धाभ० विसमयणं अंतो०, उक्क उक्करसभंगो । समचदु०पसत्थ० - सुभग०- सुस्सर-आदे० जह० हिदि० जह० एग०, उक्क० बे समयं । अज० जह० एग०, उक्क० तिरिए पलिदो० सादि० । मसिली देसू० । विशेषार्थ- - यह हम अनेक बार बतला आये हैं कि तिर्यञ्चों में सूक्ष्म जीवोंकी उत्कृष्ट काय स्थिति असंख्यात लोक प्रमाण है। इसके बाद जीव नियमसे बादर और पर्याप्त होकर जघन्य स्थितिबन्ध करता है । इसीसे यहां पाँच ज्ञानावरण श्रादिकी अजघन्य स्थितिबन्धका उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक प्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है 1 १८८. मनुष्यत्रिकमें क्षपक ध्रुव प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका काल श्रोधके समान है | अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पत्य है । पाँच दर्शनावरण, वारह कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माण प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघ-न्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट कालका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । सातावेदनीय, आहारकशरीर, आहारक श्रङ्गोपाङ्ग और यशःकीर्ति प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका काल श्रोघके समान है । असातावेदनीय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, चार जाति, श्रदारिक श्राङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो श्रानुपूर्वी, श्रातप, उद्योत, प्रशस्त विहायोगति, स्थावर आदि चार, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, दुःखर, अनादेय, अयशः कीर्ति और नीचगोत्र प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । तथा अजघन्य स्थितिबन्धका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । मिथ्यात्वके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल सामान्य मनुष्यों में दो समय कम क्षुल्लक भवग्रहण प्रमाण और शेष दो में अन्तर्मुहूर्त हैं । तथा उत्कृष्ट कालका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेय प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अजधन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है । पर मनुष्यनियोंमें उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्य है । पुरुषवेद, देवगति चतुष्क और उच्च १. मूलप्रतौ जह० एग० खुद्धाभ० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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