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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे अज० हिदि० जह० अंतो०, उक्क० तेत्तीसं सा० । मणुसगळ-मणुसाणु०-उच्चा० जह• हिदि० जह• एग०, उक्क• अंतो० । अज० जह• अंतो, उक्क० तेत्तीसं सा० देसू० । सेसं उक्क भंगो । णवरि धुविगाणं अज० जह• अंतो० ।
१८७. तिरिक्खेसु पंचणा-णवदसणा-मिच्छत्त-सोलसक-भय-दुगु-तिरिक्खग-अोरालि०-तेजा०-क०-वएण०४-तिरिक्खाणु-अगुरु०-उप०-णिमि०-णीचा०पंचंत० जह० हिदि० जह० एग०, उक्क अंतो० । अज० जह० एग०, उक्क० असंखेज्जा लोगा । सेसाणं जह० अज० हिदि० उक्कस्सभंगो। पंचिंदियतिरिक्ख०३ सव्वपगदीणं जह• अज० उक्कस्सभंगो । पंचिंदियतिरिक्खअपजत्ता० सव्वपगदीणं जह० अज० उक्कस्सगो। जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। मनुष्यगति मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्र प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है। तथा शेष प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका काल उत्कृष्टके समान है। इतनी विशेषता है कि ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषार्थ-सम्यक्त्वके अभिमुख हुए द्वितीयादि पृथिवीके नारकीके अन्तिम स्थितिबन्धमें अवस्थित होने पर स्त्यानगृद्धि आदि पाठ प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध होता है। इसका काल अन्तर्मुहूर्त है, इसलिए यहाँ इन प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। सातवीं पृथिवीमें इन प्रकृतियोंके व तिर्यश्चगति त्रिकके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त इसी प्रकार घटित कर लेना चाहिए । सातवीं पृथिवीमें जो असंयत सम्यग्दृष्टि स्वस्थानमें मनुष्यगति आदि तीनका कमसे कम एक समयतक और अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक जघन्य स्थितिबन्ध करता है,उसके इन प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त उपलब्ध होता है, इसलिए इन प्रकृतियोंका यह काल उक्त प्रमाण वहा है । तथा इन प्रकृतियोंका अजघन्य स्थितिबन्ध कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक और अधिकसे
यहाँ तीसरे व चौथे गुणस्थानका काल मिलाकर अधिकसे अधिक जितना होता है. उतने काल तक होता है। इसलिए अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर कहा है। शेष कथन सुगम है।
१८७. तिर्यश्चोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, तिर्यञ्चगति,औदारिक शरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तराय प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्टकाल असंख्यात लोक प्रमाण है। शेष प्रकतियोंके जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका भङ्ग उत्कृष्ट के समान है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिको सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। तथा पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकों में सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका काल उत्कृष्टके समान है।
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