________________
३१२
महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे चदुसंज०-पुरिस०-हस्स-रदि-भय-दुगु०-देवगदि-पसत्यएकत्तीस-उच्चागो०-पंचंत. जह• हिदि० कस्स० ? अएण, अप्पमत्तसंजद० सव्वविस० अथवा दंसणामोहखवगस्स कदकरणिज्जो होहिदि त्ति । सेसं ओधिभंगो। उवसम० श्रोधिभंगो । णवरि खवगपगदीणं उवसमगे कादव्वं ।
१४१. सासणे पंचणा-णवदसणा-सादावे. सोलसक०-पुरिस-हस्स-रदिभय०-दुगु-पचिंदिय०-तेजा०-क०-समचदु०-वएण०४-अगुरु०४-पसत्थवि०-तस०४थिरादिलक्क-णिमिण-उच्चागो०-पचंत• जह• हिदि कस्स० ? अण्ण. चदुगदि. सागार-जा० सव्वविसु० । असादा०-इत्थि० अरदि-सोग-चदुसंठा०-चदुसंघ०-अप्पसत्य-अथिरादिछक्क० जह• हिदि. कस्स० ? अण्ण ? चदुगदिय० सागार-जा. तप्पाओग्गविसु । तिरिकरवायु०-मणुसायु० जह० हिदि० कस्स० ? अण्ण. देव० णेरइ० तप्पाअोग्गसंकिलि. अथवा चदुगदियस्स तप्पागोग्गसंकिलि० । देवायु० जह• हिदि० कस्स• ? अएण. तिरिक्व० मणुस तप्पाओ०संकिलि० । तिरिक्खगदि-तिरिक्रवाणुपु०-उज्जोव-णीचा. जह• हिदि० कस्त० ? अएण.
दर्शनावरण, साता वेदनीय, चार संज्वलन, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, देवगति आदि इकतीस प्रकृतियाँ, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय प्रकृतियोंकेजधन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव जो सर्वविशुद्ध है वह अथवा जो अनन्तर समयमें कृतकृत्य वेदक सम्यग्दृष्टि होगा ऐसा दर्शनमोहनीयका क्षपक जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिवन्धका स्वामी अवधिशानियोंके समान है। उपशमसम्यग्दृष्टि जीवों में अपनी सब प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी अवधिशानियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें क्षपक प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी उपशामकको कहना चाहिए।
१४१. सासादनमें पाँच झानावरण, नौ दर्शनावरण, साता वेदनीय, सोलह कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, पञ्चेन्द्रिय जाति, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, समचतुरस्र संस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्तविहायोगति, बस चतुष्क, स्थिर आदि छह, निर्माण, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर चार गतिका जीव जो साकार जागृत है और सर्वविशुद्ध है वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। असाता वेदनीय, स्त्रीवेद, अरति, शोक, चार संस्थान, चार संहनन, अप्रशस्त विहायोगति और अस्थिर आदि छह प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर चार गतिका जीव जो साकार जागृत है और तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला है वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है । तिर्यश्चायु और मनुष्यायुके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव
और नारकी जो तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है वह अथवा चार गतिका जीव जो तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है वह उक्त दोनों श्रायुओंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। देवायुके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर तियश्च और मनुष्य जो तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है वह देवायुके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। तिर्यञ्च गति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत और नीचगोत्र प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org