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जाहण्ण-सामित्तपरूवणा
२११ णवुस०-एइंदियनादि-पंचसंठा-पंचसंघ-तिरिक्वाणु०-आदाउज्जो०-अप्पसत्यवि०थावर-भग-दुस्सर-अणादे०-गोचा० जह• हिदि. कस्स० १ अएण. देवस्स मिच्छा० तप्पाओग्गविसुद्ध । दोआयु० जह• हिदि० कस्स० १ अएण. देवस्स तप्पाओग्गसंकिलि० । देवायु० जह० हिदि० कस्स. ? अएण. तिरिक्व० मणुस० मिच्छादि० तप्पाओग्गसंकिलि । मणुसग०-ओरालि०-ओरालि अंगो०वजरिसभ -मणुसाणु० जह• हिदि० कस्स० ? अएण० देवस्स सम्मादि० सव्वविसुः । एवं पम्माए । वरि एइंदिय-आदाव-थावरं णत्थि ।
१३८. सुक्काए मणजोगिभंगो। रणवरि इत्थि०-णवुस-पंचसंठा-पंचसंघ०अप्पसत्य०-दूभग-दुस्सर-अणादे०-णीचागो० जह० हिदि० कस्स० ? अण्ण. देवस्स मिच्छादि० तप्पाओग्गविसुद्ध० ।
१३६. भवसिद्धि० ओघं । अब्भवसिद्धि० मदियभंगो। १४०. सम्मादि०-ख इग० अोधि भंगो । वेदगे पंचणा०-छदसणा०-सादावे
है वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, एकेन्द्रिय जाति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति स्थावर, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्र प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव जो मिथ्यादृष्टि है और तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला है वह उक्त प्रकतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। दो श्रायुओंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव जो तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है वह दो आयुओंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। देवायुके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य जो मिथ्यादृष्टि है और तत्प्रायोग्य संक्लेशपरिणामवाला है वह देवायुके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। मनुष्यगति, औदारिक शरीर, औदारिक श्राङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराच संहनन और मनुष्यगत्यानुपूर्वीके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव जो सम्यग्दृष्टि है और सर्वविशद्ध है वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार पद्म लेश्यामें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इस लेश्याबाले जीवोंके एकेन्द्रिय, पातप और स्थावर प्रकृतियोंका बन्ध नहीं होता।
१३८. शुक्ललेश्यामें अपनी सब प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी मनोयोगी जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि इसमें स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्रके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव जो मिथ्यादृष्टि है और तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला है वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है।
१३६. भव्य जीवों में सब प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी श्रोधके समान है। अभव्य जीवों में अपनी सब प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी मत्यज्ञानियोंके समान है।
१४०. सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवों में अपनी सब प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी अवधिज्ञानियोंके समान है। वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें पाँच झानावरण, छह
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