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________________ जहण्ण- सामित्तपरूवणा ३१३ सत्तमा पुढवीए रइ० सव्वविसु । मणुसग ० - ओरालि० ओरालि० अंगो०- वज्जरिसभ० - मणुसागु० जह० हिदि० कस्स० ? अण्ण० देव० रइय० सव्वविसु० । देवदि ० ४ जह० हिदि० कस्स० ? अण्ण० तिरिक्ख० मरणुस ० सव्वविसु० । १४२. सम्मामिच्छा० पंचणा० - इदंसणा ० - सादावे ० - बारसक० - पुरिस०-हस्सरदि-भय-दुगु'०-पंचिंदि ० - तेजा ० क० - समचदु० - वरण ०४ गुरु ०४-पसत्थ० -तस०४थिरादिछक - रिणमिण - उच्चा०- पंचत० जह० हिदि० कस्स० ? अरण ० चदुगदियस्स सागार - जा० सव्ववसु० सम्पत्ताभिमुह० । असादावे ० -अरदि-सोग- अथिर-असुभअस० जह० हिदि ० कस्स० ? अण्ण० चदुगदियस्स सत्थाणे तप्पारगविसु० । मसग ०-ओरालि०-रालि० अंगो० वज्जरिसभ० - मणुसार ० जह० द्विदि० कस्स ? erro देव० रइ० सव्वविसु० सम्मत्ताभिमुह० देवगदि० ०४ जह० द्विदि० कस्स० ? अण्ण० तिरिक्ख० मपुस ० सागार-जा० सव्वविसु० सम्मत्ताभिमुह० । मिच्छादिट्ठी • मदिय० भंगो। सरिण० मणुसभंगो । असरिण० तिरिक्खोघं । आहार० मूलोघं । णाहार० कम्मइगभंगो | एवं जहएगो समत्तों । एवं सामित्तं समत्तं । ० है ? तर सातवीं पृथिवीका नारकी जो सर्वविशुद्ध है, वह उक्त प्रकृतियों के जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है । मनुष्यगति, औदारिक शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराच संहनन और मनुष्य गत्यानुपूर्वी प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है ? अन्यतर देव और नारकी जो सर्वविशुद्ध है, वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। देवगति चतुष्कके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्तर तिर्यश्च और मनुष्य जो सर्वविशुद्ध है, वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है । १४२. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, साता वेदनीय, बारह कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, पञ्चेन्द्रिय जाति, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, समचतुरस्र संस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रस चतुष्क, स्थिर आदि छह, निर्माण, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर चार गतिका जीव जो साकार जागृत है, सर्वविशुद्ध है और सम्यक्त्वके श्रभिमुख है, वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है । साता वेदनीय, रति, शोक, अस्थिर, अशुभ और यशःकीर्ति प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर चार गतिका जीव जो स्वस्थानस्थित तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला है, वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है । मनुष्य गति, औदारिक शरीर, औदारिक श्राङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराच संहनन और मनुष्यगत्यानुपूर्वी प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव और नारकी जो सर्वविशुद्ध है और सम्यक्त्वके अभिमुख है, वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। देवगति चतुष्कके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? श्रन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य जो साकार जागृत है, सर्वविशुद्ध है और सम्यक्त्व अभिमुख है, वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। मिथ्यादृष्टि जीवों में अपनी सब प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी मत्यज्ञानियोंके समान है । संज्ञी जीवोंमें अपनी सब प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी मनुष्योंके समान है । श्रसंज्ञी जीवों में तिर्यञ्चोंके समान है । आहारक जोवोंमें मूलोघके समान है और अनाहारक जीवों में कार्मण काययोगी जीवोंके समान है । इस प्रकार जघन्य स्वामित्व समाप्त हुआ । इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ । ४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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