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________________ २८८ महाबंधे डिदिबंधाहियारे ११५. आदेसेण णेरइएसु पंचणा-णवदसणा०-सादावे-मिच्छत्त-सोलसक.. पुरिसके०-हस्स-रदि-भय-दुगु-मणुसग०-पंचिंदि०-ओरालि०-तेजा०-क-समचदु०ओरालि अंगो०-वज्जरिसभ०-वएण०४-मणुसाणु०-अगुरु०४-पसत्थ० तस०४-थिरादिछक्क-णिमि०-णीचागो-पंचंत• जह• हिदि० कस्स ? अएण. असएिणपच्छागदस्स' पढम-विदियसमये णेरइगस्स सागार-जा. सव्वविसुद्ध० जह• हिदि० वट्ट । दोआयु० जह० हिदि० कस्स ? अएण. मिच्छादि० तप्पाओग्गसंकिलि. जह. आबा. जह• हिदि० वट्ट । तित्थय. जह• हिदि. कस्स. ? अएण. असंजदसम्मादि० सागार-जा० सव्वविमु० । सेसाणं असएिणपच्छागदस्स पढमविदियसमए णेरइगस्स सागार-जा० तप्पाओग्गविसु । एवं पढमाए । वहाँ गिन आये हैं। अब रहीं शेष ७९ प्रकृतियाँ सो इनका बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त किसी भी जीवके उनके जघन्य स्थितिबन्धके योग्य परिणाम होनेपर जघन्य स्थितिबन्ध हो सकता है इसलिए इनके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवको कहा है। चार आयुओं में मनुष्यायु और तिर्यञ्चायुका जघन्य स्थितिबन्ध सब प्रकारके तिर्यश्च और मनुष्योंके हो सकता है। यही कारण है कि इन दो आयुओंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी उक्त दो गतिका अन्यतर जीव कहा गया है। मात्र देवायु और नरकायुका जघन्य स्थितिबन्ध पश्चेन्द्रियसे नीचे किसी भी जीवके नहीं होता। इसलिए इन दो आयुओंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी संशी या असंज्ञी अन्यतर जीव कहा है। यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि मलमें जी योग्यताएँ कहीं हैं, उनके साथ ही ये सब जीव उक्त सब प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धके स्वामी होते हैं। ११५. आदेशसे नारकियों में पाँच झानावरण, नौ दर्शनावरण, साता वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराच संहनन, वर्ण चतुष्क, मनुष्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, प्रसचतुष्क, स्थिर आदि छह, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तराय इन प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर असंशी पर्यायसे आया हुआ नारकी जो प्रथम और द्वितीय समयमें स्थित है, साकार जागृत है, सर्वविशुद्ध है और जघन्य स्थितिका बन्ध कर रहा है,वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। दो आयओंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टि नारकी जो तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है और जघन्य आबाधाके साथ जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है,वह दो आयुओंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर असंयत सम्यग्दृष्टि नारकी जो साकार जागृत है और सबसे विशुद्ध परिणामवाला है,वह तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। तथा शेष प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी असंक्षीचर, प्रथम और द्वितीय समयमें स्थित, साकार जागृत और तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला नारकी जीव है। इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिए। विशेषार्थ-प्रथम नरकमें असंही जीव मरकर उत्पन्न होता है और इसके उत्पन्न १. मूलप्रतौ-पचागदस्स इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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