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________________ २६० महाबंधे दिदिबंधाहियारे व्वियअंगो०-वएण०४-णिरयाणु -अगुरु०४-अप्पसत्थवि०-तस०४-अथिरादिछक्क-- णिमिण-णीचागो०-पंचंतरा० उक्क० हिदि० कस्स० ? अण्णद० पंचिंदिय० सएिण. मिच्छा. सागार-जागार० उक्कस्ससंकिलिह० अथवा ईसिमझिमप० । सेसाणं तस्सेव पंचिंदिय० सएिण. मिच्छादि० सागार-जागार० तप्पाअोग्ग-संकिलि । देवायु० उक० हिदि० कस्स० ? अण्णदरस्स सम्मादिहि० तप्पाओग्गविसु० उक्क० आवा० । सेसाणं आयूणं ओघं । पंचिंदियतिरिक्ख०३ [तिरिक्खोघं] । ७४. पंचिंदियतिरिक्खअपजत्ते पंचणाणावरणी०-णवदंसणा-असादावेमिच्छत्त-सोलसक०--रणवुस०--अरदि-सोग-भय-दुगु--तिरिक्खगदि--एइंदियजादि-- ओरालि-तेजा-क०-हुडसं०-वएण०४-तिरिक्खाणुपु०--अगुरु०-उप-थावर-सुहुमअपज्जत्त-साधार०-अथिरादिपंच०-णिमिण-णीचागो०-पंचंतरा० उक्क० हिदि. कस्स ? अण्ण० सएिणस्स सागार-जागार० उक० संकिलि० वट्टमाणस्स । सेसाणं तस्स चेव सएिण• तप्पाप्रोग्गसंकिलिह० उक्क० हिदि० वट्टमाण। दो आयु० उक्क० हिदि० कस्स० ? अण्णद० सएिणस्स वा असएिणस्स वा तप्पाओग्गविसुद्धस्स। शस्त विहायोगति,सचतुष्क, अस्थिरादिक छह, निर्माण,नीचगात्र, और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है। पञ्चेन्द्रिय, संशी, मिथ्यादृष्टि, साकार जागृत और उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला अथवा अल्प,मध्यम परिणामवाला अन्यतर तिर्यश्च जीव उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी पञ्चेन्द्रिय, संशी, मिथ्यादृष्टि, साकार जागृत और तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला वही जीव है। देवायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला और उत्कृष्ट आवाघाके साथ उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करनेवाला अन्यतर सम्यग्दृष्टि तिर्यश्च देवायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । तथा शेष आयुओंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी श्रोधके समान है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च त्रिकों अपनी-अपनी प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिके बन्धका स्वामी सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। ७४. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त जीवों में पाँच शानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान वर्णचतुष्क, तिर्यंचगति प्रायोग्यानुपूर्वी, गुरुलघु, उपधात, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिरादिक पाँच, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है? साकार जागृत और उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला अन्यतर संशो जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी संशी, तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला और उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला वही जीव है । दो आयुओंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्यविशुद्ध परिणामवाला अन्यतर संशी या असंशी जीव दो आयुओंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। विशेषार्थ-तिर्यञ्च सामान्यके आहारकद्विक और तीर्थङ्करके विना कुल बन्धयोग्य १. मूलप्रतौ-तिरिक्खभंगो ३ पंचिंदिय-इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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