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________________ Magisworgi P संखेज्जगुरणवड्डिबं० संखेज्जगु० । संखेज्जभागवड्डिबं० संखेज्जगु० | संखेज्जगुणहाणिबं० संखेज्जगु० | संखेज्जभागहारिणबं० संखेज्जगु० । अव०ि संखेज्जगु० । वेदरणीयगामा-गोदाणं सव्वत्थोवा अवत्तव्वबं० । असंखेज्जगुणवडिवं ० संखेज्जगु० | संखे - ज्जगुणवड्डिबं० संखेज्जगु० | संखेज्जभागवड्डिबं० संखेज्जगु० | संखेज्जगुणहाणिबं० संखेज्जगु० ० | संखेज्जगुणहाणिबं० संखेज्जगु० | संखेज्जभागहारिणबं० संखेज्जगु० । दिबं० संखेज्जगु० । मोह० सव्वत्थोवा प्रवत्त ० । संखेज्जभागवडिबं० संखेज्जगु० । संखेज्जभागहारिणबं० संखेज्जगु० । अवदिबं० संखेज्जगु० । ] ४१२. अभि० सुद०-अधि० सत्तणं क० सव्वत्थोवा अवत्तव्वबं० । असंखेज्जगुणवड्डि० सं०गु० | सेसं इत्थिभंगो । एवं ओधिदं०-मुक्कले० सम्मादि ० खइग ० । मपज्जव - संजद ० मणुसिभंगो । एवं सामाइ ० - छेदो० । वरि अवत्तव्यं णत्थि । परिहार० सव्वहभंगो । ४१३. [सुहुमसंपरायसंजदेसु छणं कम्माणं संखेज्जभागवड्डिबंधगा जीवा सव्वत्थोवा । संखेज्जभागहाणिबंधगा जीवा संखेज्जगुणा । अवदिबंधगा जीवा २०७ I जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यात भागवृद्धिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यात गुणहानिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यात भागहानिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके वक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे असंख्यात गुणवृद्धिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यांत गुणवृद्धिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यात भागवृद्धिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यात गुणहानिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातगुणहानिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यात भागहानिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं। मोहनीय कर्मके वक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे संख्यात भागवृद्धिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यात भागहानिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । ४१२. श्रभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें सात कर्मोंके अवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जोव सबसे स्तोक हैं । इनसे असंख्यात गुणवृद्धिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इससे आगे शेष अल्पबहुत्व स्त्रीवेदी जीवोंके समान है । इसी प्रकार अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । मन:पर्ययज्ञानी और संयत जीवों में अपने सब पर्दोका अल्पबहुत्व मनुष्यिनियोंके समान है । इसी प्रकार सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवके जानना चाहिए। इतनी विशेपता है कि इनके अवक्तव्य पद नहीं है । परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंके अपने पदोंका अल्पबहुत्व सर्वार्थसिद्धिके समान है। ४१३.. सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें छह कर्मोंकी संख्यात भागवृद्धिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे संख्यातभागहानिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित पद की बन्ध करनेवाले जीव संख्यात गुणे हैं। संयतासंयत जीवोंमें सात कर्मों की संख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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