________________
बिंधे अप्पा बहुगं
२०५
४०८. तिरिक्खे सत्तणं क० सव्वत्थोवा संखेज्जगुणवड्डि हारिण० | संखेज्जभागवड - हाणिबंध ० दो वि तुल्लाणि असं ० गु० । असंखेज्जभागवड्डि- हाणिबं० दो वितुल्ला तगु० । अवडि० असं० गु० । एवं ओरालियमि० - मदि० -सुद्०संज० - किरण ० - पील० काउ ० - अब्भवसि ० -मिच्छादिद्विति । पंचिदियतिरिक्खेसु सत्तएण क० सव्वत्थोवा [ संखेज्जगुणवडि-हारिणबंधया ।] संखेज्जभागवड्ढि -हारिणबंध दो वि तुला असं०गु० । असंखेज्जभागवड्डि- हाणिबं० दो वि तुल्ला संखेज्जगु० । अदिबंध असं० गु० । एवं पंचिदिद्यतिरिक्खञ्चपज्जत्त-पंचिदिय-तसअपज्ज० । पंचिदियतिरिक्खपज्जत - जोगिणीसु एवं चैव । णवरि संखेज्जभागवड्डिहारिणबंध ० संखेज्जगुणं कादव्वं ।
०
४०६. मणुसे सत्तणं क० सव्वत्थोवा अवतव्व० । असं० गुणवड्डि० संखेज्जगुणा । असंखेज्जगुणहारिण० संखेज्जगु० | संखेज्जगुणवड्डि- हाणि दो तुल्ला [ असंखेज्जगुरणा ।] संखेज्जभागवड्डि-हारिणवं ० दो वि तुल्ला संखेज्जगु० । [असंखेज्जभागवड्डि-हारिणबंधया दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा ।] अवधि ० ० सं० गु० । एवं मणुसपज्जत - मणुसिणीसु । गवरि संखेज्जगुणं कादव्वं ।
४०८. तिर्यञ्चों में सात कर्मोकी संख्यात गुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिका बन्ध करने वाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यात भागहानिका बन्ध करनेवाले जीव दोनों ही समान होकर असंख्यातगुणे हैं । श्रसंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानिका बन्ध करनेवाले जीव दोनों ही समान होकर अनन्तगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव श्रसंख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार श्रदारिकमिश्रकाययोगी, मत्यज्ञानी : श्रुताज्ञानी, असंयत, कृष्ण लेश्यावाले, नील लेश्यावाले, कापोत लेश्यावाले, अभव्य, और मिथ्यादृष्टि जीवों के जानना चाहिए । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में सात कर्मोंकी संख्यातगुणव और संख्यातगुणहानिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यात भागहानिका बन्ध करनेवाले जीव दोनों ही समान होकर श्रसंख्यातगुणे हैं । इनसे श्रसंख्यातभागवृद्धि और श्रसंख्यातभागहानिका बन्ध करनेवाले जीव दोनों ही समान होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त, पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त और त्रस अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्त और पञ्च ेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनी जीवोंमें इसी प्रकार जानना जाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें संख्यात भागवृद्धि और संख्यातभागहानिका बन्ध करनेवाले जीव्रोको संख्यातगुणा करना चाहिए ।
।
४०९. मनुष्यों में सात कर्मोंके अवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे असंख्यातगुणवृद्धिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातगुणहानि का बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिका बन्ध करनेवाले जीव दोनों ही समान होकर असंख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यात भागवृद्धि और संख्या भागहानिका बन्ध करनेवाले जीव दोनों ही समान होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे श्रसंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानिका बन्ध करनेवाले जीव दोनों ही समान होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणे करना चाहिए ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org