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________________ २०४ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे संखेज्जगुणा । संखेज्जगुणवड्डि-हाणिबंधगा दो वि तुल्ला असंखेज्जगुणा । संखेजभागवडि-हाणिबंधगा दो वि तुल्ला असं०गु० । असंखेज्जभागवडि-हाणिबंधगा दो वि तुल्ला अणंतगुणा । अवहिद० असं०गु० । आयु. सव्वत्थोवा अवत्तबंधगा। असंखेज्जभागहाणि. असं गु० । आयु० एवं याव अणाहारग त्ति । णवरि जम्हि संखेज्जा जीवा तम्हि संखेज्जगुणं कादव्वं । एवं अोघभंगो कायजोगिओरालियकायजोगि-णवुस०-कोधादि०४-अचक्खु०-भवसि-आहारग त्ति । एवरि एस०-कोध-माण-माया० सत्तएणं क. सव्वत्थोवा असंखेज्जगुणवडिबंधः । असंखेज्जगुणहाणिव० संखेज्जगु०। उवरि ओघं। एवं लोभे । णवरि मोहणी० ओघं । ४०७. आदेसेण णेरइएसु सत्तएणं क० सव्वत्थोवा संखेज्जगुणवड्डि-हाणिबंध। संखेज्जभागवडि-हाणिबंधगा दो वि तुल्ला संखेज्जगु० । असंखेज्जभागवडि-हाणिबंधगा दो वि तुल्ला संखेज्जगु० । अवहिबंध. असं०गु० । एवं सव्वणेरइएसु मणुसअपजत्त-सव्वदेव--उब्बिय--वेउब्बियमि०-विभंग-तेउ-पम्म०-वेदगससासण-सम्मामि० । वरि सबढे संखे० देवा । करनेवाले जीव दोनों ही समान होकर असंख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यात भागहानिका बन्ध करनेवाले जीव दोनों ही समान होकर असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका बन्ध करनेवाले जीव दोनों ही समान होकर अनन्तगुणे हैं। इनसे अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। आयुकर्मके प्रवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे असंख्यातभागहानिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। आयुकर्मकी अपेक्षा इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जिस मार्गणामें संख्यात जीव हैं,उसमें संख्यातगुणे कहना चाहिए । इसी प्रकार ओघके समान काययोगी, औदारिक काययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेदी, क्रोध कषायवाले, मान कषायवाले और माया कषायवाले जीवोंमें सात कर्मोंकी असंख्यात गुणवृद्धिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे असंख्यातगुणहानिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं। तथा इसके आगेका अल्पबहुत्व ओघके समान है। इसी प्रकार लोभ कषायमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसमें मोहनीय कर्मके सब पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका अल्पबहुत्व ओघके समान है। ४०७. आदेशसे नारकियोंमें सात कर्मों की संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यात भागहानिका बन्ध करनेवाले जीव दोनों ही समान होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका बन्ध करनेवाले जीव दोनों ही समान होकर संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार सब नारकी, मनुष्य अपर्याप्त, सब देव, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, विभङ्गज्ञानी, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले, वेदकसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि सर्वार्थसिद्धिमें देव संख्यातगुणे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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