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________________ ढबंधे भावो अप्पा हुंगं २०३ त्ति । णवरि असंखेज्जगुणहाणि जाणिदव्वं । एदेसिं त्रयुगं दो पदा भुजगारभंगो । ४०४. रिए सत्तणं क० तिष्णिवड्डि-हारिण० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवट्ठि॰ णत्थं अंतरं । आयु० भुजगारभंगो । यम्हि दो वड्डि हारिण० अत्थि ताम्हि सिं घं । सेसपदा० सव्वत्थ भुजगारभंगो । गवरि सांतररासीणं सव्वपदा० पगदिअंतरं । एवं अंतरं समत्तं । भावो ४०५. भावाणुगमेण दुवि० ओघे० दे० । ओघे० सत्तरणं क ० चत्तारिवडि - हारिण-वहि-वत्त ० बंधगा आयु० अवत्त० - असंखेज्जभागहाणिबंधगा त्ति को भाव ? दो भावो । एवं याव अणाहारगत्ति दव्वं । एवं भावं समत्तं । अप्पा बहुगं T ४०६. अप्पाबहुगं दुवि० - ओघे० दे० । श्रघे० सत्तणं क० सव्वत्थोवा अवत्तव्वबंधगा । असंखेज्जगुरणवढिबंधगा संखेज्जगुणा । असंखेज्जगुणहाणिबंधगा असंख्यात गुणहानिका अन्तर काल जानकर कहना चाहिए। इन सब जीवोंके आयु कर्मके दोनों ही पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका अन्तर काल भुजगार बन्धके है 1 समान ४०४. नारकियों में सात कर्मोंकी तीन वृद्धियों और तान हानियोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । श्रवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंका अन्तर काल नहीं है । आयुकर्मके दोनों ही पदका बन्ध करनेवाले जीवोंका अन्तर काल भुजगारबन्धके समान है। जिन मार्गणाओं में दो वृद्धियाँ और दो हानियाँ हैं उनमें उनका अन्तर काल श्रोधके समान है। तथा शेष पदोंका अन्तर काल सर्वत्र भुजगारबन्धके समान है। इतनी विशेषता है कि सान्तर राशियोंके सब पदोंका अन्तर काल प्रकृतिबन्ध अन्तरकालके समान है । इस प्रकार अन्तरकाल समाप्त हुआ । भाव ४०५. भावानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— श्रोध और आदेश । श्रोघकी अपेक्षा सात कमी चार वृद्धियों, चार हानियों, अवस्थित और अवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीवोंका तथा आयुकर्मके वक्लव्य और असंख्यात भागहानिका बन्ध करनेवाले जीवोंका कौन-सा भाव है ? श्रदयिक भाव है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । इस प्रकार भाव समाप्त हुआ ! अल्पबहुत्व ४०६. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-- ओघ और आदेश । घसे सात कर्मों के अवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे असंख्यात गुणवृद्धिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यात गुणहानिका बन्ध क़रनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिका बन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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