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________________ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे अणाहारगति णादच्वं । आयु० दो वि पदा सव्वद्धा । एवं अत- असंखेज्जलोगरासी अप्पप्पणो पदाणि । २०२ ४०२. आदेसेण खेरइएस सत्तरणं क० तिष्णिवडि-हारिण० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखेज्ज० । अवहि० सव्वद्धा । आयु० भुजगारभंगो । एवं सव्वा संखेज्जरासी । सव्वाणं संखेज्जरासीणं पि तं चैव । गवरि यम्हि आवलियाए असंज्जभागो तम्हि संखेज्जसमयं । भयरिगज्जरासीसु अवद्वि० जह० एग०, उक्क० पदिकालो । तिरिक्खगदीए सेसेसु घभंगो जाणिदूर खेदव्वं । एवं कालं समत्तं । अंतरं . ४०३. अंतराणुगमेण दुवि० - ओघे० दे० । ओघे० सत्तरणं क० असंखेज्ज - भागवड्डि-हारिण-अवद्वि० णत्थि अंतरं । बेवड्डि-हारिण० जह० एंग०, उक्क० अंतो० । एवं अ ंतरासीणं सव्वपदारिण । असंखेज्जगुणवड्डि अवत्त० जह० एग०, उक० वासपुधत्तं । असं० गुणहारिण० जह० ए०, उक्क० छम्मासं । एवं याव अरणाहारग गुणवृद्धि, असंख्यात गुणहानि और अवक्तव्य पद होते हैं, उनमें अनाहारक मार्गणा तक इसी प्रकार काल जानना चाहिए। श्रायुकर्मके दोनों ही पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका काल -सर्वदा है । इसी प्रकार अनन्त राशियों और असंख्यात लोकप्रमाण राशियोंका अपने-अपने पदों की अपेक्षा काल जानना चाहिए । 1 ४०२. आदेश से नारकियों में सात कर्मोंकी तीन वृद्धियों और तीन हानियोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण है | अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंका काल सर्वदा है । आयुकर्मके दोनों ही पर्दोका बन्ध करनेवाले जीवोंका काल भुजगार बन्धके समान है । इसी प्रकार सब असंख्यात राशियोंका काल जानना चाहिए। तथा सब संख्यात राशियोंका काल भी इसी प्रकार है । इतनी विशेषता है कि जहाँ आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काल कहा है, वहाँ संख्यात समय काल कहना चाहिए। तथा जितनी भजनीय राशियाँ हैं, उनमें अवस्थित पदकां बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपने- अपने प्रकृतिबन्धके कालके समान है । तिर्यञ्च गतिमें तथा शेष मार्गणाओं में श्रधके समान काल जानकर कथन करना चाहिए । इस प्रकार काल समाप्त हुआ ! अन्तर ४०३. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - श्रोध और आदेश । श्रघसे सात कर्मोंकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंका अन्तर काल नहीं है । दो वृद्धियों और दो हानियोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार अनन्त राशियों के सब पदका अन्तरकाल जानना चाहिए। श्रसंख्यातगुणवृद्धि और श्रवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्त्व है। असंख्यात गुणहानिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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