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बढिबंधे कालो
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३६६. सासणे सत्तणं क० तिरिणवडि-हारिण अवडि० अह - बारहचो० । आयु० दो विपदा बा० । सम्मामि० सत्तएणं क०
तिविडि-हारिण
अ० अ० ।
४००. असरिण० सत्तण्णं क० एक्कवड्डि- हारिण अव०ि सव्वलो ० | दोवडिहारिण० लोग० सं० सव्वलो० । आयु० दो वि पदा सव्वलो० । अरणाहार० सत्तरणं क० असंखेज्जभागवडि-हारिण अवट्ठि० सव्वलो० । बेवढि हारिण० लोग ० असं० एक्कारसचो० | वेडव्वियमिस्सादि सेसं खेत्तं । एवं फोसणं समत्तं ।
कालो
४०१. कालागुगमेण दुवि० - ओघे० दे० । ओ० सत्तणं क० असंखेज्ज - भागवडि-हारिण-अवदिबंधगा केव० ? सव्वद्धा । बेवड्डि-हाणिबंध० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखेज्जदिभागो । असंखेज्जगुणवड्ढि -हारिण श्रवत्त० जह० एग०, उक्क० संखेज्जसमयं । एवं जहि असंखेज्जगुणवडि-हारिण अवत्त ० तम्हि याव
३९९. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सात कर्मोंकी तीन वृद्धियों, तीन हानियों और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदंह राजू क्षेत्रका स्पर्श किया है। आयुकर्मके दोनों ही पदोंका बन्ध करनेवाले जीवने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्श किया है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में सात कर्मों की तीन वृद्धियों, तीन हानियों और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्श किया है
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४००. असंज्ञी जीवों में सात कर्मोंकी एक वृद्धि, एक हानि और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। दो वृद्धियों और दो हानियोंका बन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके श्रसंख्यातवें भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है । श्रयुकर्मके दोनों ही पर्दोका बन्ध करनेवाले जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है । अनाहारक जीवोंमें सात कर्मोंकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। दो वृद्धियों और दो हानियोंका बन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और कुछ कम ग्यारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्श किया है । वैक्रियिकमिश्र आदि शेष मार्गणा में अपने पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है ।
इस प्रकार स्पर्शन समाप्त हुआ ।
काल
४०१. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकार का है— श्रोध और आदेश । श्रघसे सात कर्मोंकी संख्यातभागवृद्धि, श्रसंख्यात भागहानि और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंका कितना काल है ? सब काल है । दो वृद्धियों और दो हानियोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । श्रसंख्यातगुणवृद्धि, श्रसंख्यातगुणहानि और अवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । जिन मार्गणाओं में असंख्यात २६
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