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________________ १९८ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे लोगस्स असं० । आयु० दो वि पदा सव्वलोगो । णवरि बादरएइंदिय-बादरवाउ आयुग० दो वि पदा० लोगस्स संखेज्ज । बादरवाउ०पज्जत्ता सव्वे भंगा लोगस्स संखेज्ज० । सेसबादर-बादरअपज्जत्ता० लोगस्स असंखेज्जदिभागे । सेसासु सव्वेसिं सव्वे भंगा लोग० असंखेज्जदिभागे । एवं खेत्त समत्तं । फोसणं ३६१. फोसणाणुगमेण दुवि०–ोघे० आदे० । ओघे० सत्तएणं क० असंखेज्जभागवड्डि-हाणि-अवहिदबंधगेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगो। दोवडिहाणि० अहचोद्दस० सव्वलोगो वा। सेसपदा० खेत्तं । आयु. दो वि पदा० सव्वलोगे। ३६२. आदेसेण णेरइएमु सत्तएणं क. तिरिणवडि-हाणि-अवहिद० छच्चोइस० । आयु० खेत्तं । लोकप्रमाण है,उनका क्षेत्र सब लोक है। तथा शेष पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। आयुकर्मके दोनों ही पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र सब लोक है । इतनी विशेषता है कि बादर एकेन्द्रिय और वादर वायुकायिक जीवोंमें आयुकर्मके दोनों ही पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यात भागप्रमाण है। बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंमें सब पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है। शेष रहे बादर और बादर अपर्याप्त जीवों में सब पदोका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। शेष रहीं सब मार्गणाओंमें सब कौके सब पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इस प्रकार क्षेत्र समाप्त हुआ। स्पर्शन ३९१. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश। श्रोधको अपेक्षा सात कर्मोकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? सब लोकका स्पर्श किया है। दो वृद्धियों और दो हानियोंका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। शेष पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। आयुकर्मके दोनों ही पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। विशेषार्थ-संख्यात भागवृद्धि और संख्यात भागहानिका बन्ध द्वीन्द्रिय आदि जीवोंके होता है तथा संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिका बन्ध पञ्चेन्द्रियोंके होता है यह पहले कह पाये हैं। इस दृष्टिसे इन पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोक कहा है। विशेष खुलासा खुद्दाबन्धको देखकर कर लेना चाहिए। शेष कथन सुगम है। ३६२. प्रादेशसे नारकियोंमें सात कोंकी तीन वृद्धियों, तीन हानियों और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्श किया है। आयुकर्मके दोनों पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। १. मूलप्रतौ खेत्तं । एवं भुजगारभंगो तिरिक्खेसु इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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