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वहिबंधे फोसणं ३६३. तिरिक्खेसु सत्तएणं क. बेवडि-हाणि. लोग. असं० सव्वलो० । सेसं ओघ । सव्वपंचिंदियतिरिक्खेसु सत्तएणं क० तिएिणवडि-हाणि-अवहि. लोग० असं० सव्वलो० । आयु० खेत्तं । एवं मणुसअप० । विगलिंदि० बेवडिहाणि-अवट्टि. तं चेव । पंचिंदिय-तसअप-मणुस ३ सत्तएणं क. तिएिणवड्डिहाणि-अवहि. पंचिंदियतिरिक्वभंगो । सेसं खेत्तं । देवेसु भुजगारभंगो ।
३६४. सव्वएइंदिय-पुढवि०-आउ-तेउ०-वाउ०-वणप्फदिपत्तेय-णियोदेसु अहएणं क. सव्वपदा० सव्वलोगो । णवरि सव्वबादरएइंदिय-बादरपुढवि०-आउ०तेउ०-वाउ०-बादरवणप्फदि-णियोद-बादरवणप्फदिपत्तेय० आयु० खेत्तं । बादरपुढवि०-आउ०-तेउ०पज्जत्ता० पंचिंदियतिरिक्वअपज्जत्तभंगो । एवं बादरवाउ० पन्ज । णवरि लोग० संखेन्ज ।
३६५. पंचिंदिय-तस०२ सत्तएणं क० तिण्णिवडि-हाणि-अवट्टि पहचोदस० सव्वलोगो वा । सेसपदा० खेत्तं । आयु० दो विपदा अहचो। एवं पंचमण-पंच
३९३. तिर्यञ्चों में सात कर्मोंकी दो वृद्धियों और दो हानियोंका बन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। शेष पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन श्रोधके समान है। सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंमें सात कमौकी तीन वृद्धियों,तीन हानियों और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें
और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। आयकर्मके दोनों ही पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए । विकलेन्द्रियों में अपने पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन इसी प्रकार है। पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त, अस अपर्याप्त और मनुष्यत्रिकमें सात कर्मोंकी तीन वृद्धियों, तीन हानियों और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन पञ्चेन्द्रिय तिर्योंके समान है। शेष पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । देवोंमें सब पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन भुजगारानुगम के समान है।
३९४. सब एकेन्द्रिय, पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर और निगोद जीवोंमें आठों कर्मोके सब पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंने सब लोकका स्पर्श किया है । इतनो विशेषता है कि सब बादर एकेन्द्रिय, सब बादर पृथिवीकायिक, सब बादर जलकायिक, सब बादर अग्निकायिक, सब बादर वायुकायिक, सब बादर वनस्पतिकायिक, सब बादर निगोद और सब बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवों में आयु कर्मके दोनों पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त और बादर अग्निकायिक पर्याप्त जीवोंमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है। इसी प्रकार बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें लोकका संख्यातवाँ भागप्रमाण स्पर्शन है।
३९५. पञ्चेन्द्रियद्विक और त्रसद्विकमें सात कर्मोंकी तीन वृद्धियों, तीन हानियों और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। शेष पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है।
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