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बहिबंधे परिमाणं
१९७ कम्मइ०-णवुस-कोधादि०४-मदि०-सुद०-असंज०-अचक्खु०-किरण--णील-काउ०भवसि०-मिच्छादि०-असएिण-आहारग त्ति । णवरि सगपदाणि जाणिदव्वाणि ।
३८८. मणुसेसु सत्तएणं क० तिरिणवडि-हाणि-अवहि० आयु दो पदा० असंखेजा। [सत्तएणं कम्माणं सेसपदा० संखेजा।] एवं पंचिंदिय-तस०२-पंचमणपंचवचि०-इत्थि०-पुरिस०-आभि०-सुद०-ओधि०-चक्खुद-बोधिदं०-मुक्कलेसम्मादि०-खइग०-सरिण त्ति । णवरि इत्थिवे-पुरिस. सत्तएणं क. अवत्त पत्थि । सुक्कले०-खइग० आयु० संखेजा। __ ३८६. मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु [ सव्वपदा] आहार-आहारमि-अवगदमणपज्ज०-संजद०-सामाइ०-छेदो०-परिहार-सुहुमसं० सगपदा संखेज्जा । सेसाणं णिरयादीणं अहणणं क. सगपदा० असंखेज्जा। गवरि आणदादि उवरिमदेवेसु आयु० दो वि पदा० संखेज्जा । उवसमस० मणुसोघं । एवं परिमाणं समत्तं ।
खेत्तं
३६०. खेत्ताणुगमेण दुवि०–ोघे आदे० । ओघे सत्तएणं कम्माणं याणि पदाणि परिमाणे अणंता असंखेज्जा लोगाणि ताणि सव्वलोगे। सेसाणि पदाणि श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, कृष्ण लेश्यावाले, नील लेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, भव्य, मिथ्यादृष्टि, असंही और आहारक जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपनेअपने पद जानकर परिमाण कहना चाहिए।
३८८. मनुष्यों में सात कर्मोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदका तथा आयुकर्मके दोनों पदोंका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यात हैं । तथा सात कर्मोंके शेष तीन पदोंका बन्ध करनेवाले जीव संख्यात हैं। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रियद्विक, त्रसद्विक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, आभिनिबोधिकक्षानी, श्रुतशानी, अवधिशानी, चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, और संझी जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवों में सात कमौके प्रवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीव नहीं हैं। तथा शुक्ललेश्यावाले और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवों में आयुकर्मके दोनों पदोंका बन्ध करनेवाले जीव संख्यात हैं।
३८९. मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंमें सब पदोंका तथा आहारककाययोगी, आहा. रकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्पराय संयत जीवों में अपने-अपने पदोंका बन्ध करनेवाले जीव संख्यात हैं । शेष नारकादि मार्गणाओंमें आठौँ कौके अपने-अपने पदोंका बन्ध करनेवाले जीवसंख्यात हैं । इतनी विशेषता है कि आनतादि ऊपरके देवों में आयुकर्मके दोनों ही पदोंका बन्ध करनेवाले जीव संख्यात हैं। उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सब पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका परिमाण सामान्य मनुष्यों के समान है । इस प्रकार परिमाण समाप्त हुआ।
३९०. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। श्रोधकी अपेक्षा सात कमौके जिन पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका परिमाण अनन्त और असंख्यात
१. मूलप्रतौ मणुसिणीसु सद्ध० आहार० इति पाठः । २. मूलप्रतौ पदा० असंखेज्जा इति पाठः ।
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