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________________ वहिबंधे णाणाजीवेहि भंगविचयो णाणाजीवेहि भंगविचयो ३८३. गाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमो दुविधो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण सत्तएणं कम्माणं असंखेज्जभागवडि० हाणि अवहिदबंधगा य णिंयमा अस्थि । सेसाणि पदाणि भयणिज्जाणि । आयु० दो वि पदा णियमा अत्थि । एवं ओघभंगो तिरिक्खोघादि सव्वेसि अणंतरासीणं सगपदाणि । ३८४. मणुसअपज्जत्त-वेउव्वियमि-आहार-आहारमि०-अवगद०-सुहुमसं०उवसम-सासण-सम्मामि० सव्वपदाणि भयणिज्जाणि । ३८५. पुढवि०-आउ-तेउ-बाउ० तेसिं च बादर० बादरअपज्जत्ता० तेसिं सव्वसुहम० बादरवण पत्तेय तस्सेव अपज्जत्त० अहएणं क. सव्वपदाणि णियमा अत्थि। सेसाणं णिरयादि याव सणिण त्ति सत्तएणं क० अवहिणियमा अस्थि । सेसाणि पदाणि भयणिज्जाणि । आयु० दो पदाणि भयणिज्जाणि । एवं भंगविचयो समत्तो। नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय ३८३. नाना जीवोंकी अपेक्षा मङ्गविचयानुगम दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । श्रोधसे सात कर्मोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितपदका बन्ध करनेवाले जीव नियमसे हैं । शेष पद भजनीय हैं । आयुकर्मके दोनों ही पदोंका बन्ध करनेवाले जीव नियमसे हैं। इस प्रकार अोधके समान सामान्य तिर्यञ्चोंसे लेकर सब अनन्त राशियोंके अपने-अपने पदोंके अनुसार भङ्ग जानने चाहिए। विशेषार्थ-कुल पद १० हैं-चार वृद्धिबन्ध, चार हानिबन्ध अवस्थितबन्ध और अवक्तव्यबन्ध । इनमें से ओघसे तीन पदवाले जीव नियमसे हैं, इसलिए यह एक ध्रुव भङ्ग है। तथा सात पद भजनीय होनेसे ३४३४३४३४३४३४३ = २१८७-१ = २१८६ अध्रुव भग होते हैं। तथा इनमें १ ध्रुव भङ्ग मिलानेपर ध्रुव और अध्रुव कुल भङ्ग २१८७ होते हैं । ३८४. मनुष्य अपर्याप्त, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, सूक्ष्मसाम्परायसंयत, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टि इन मार्गणाओं में सब पद भजनीय हैं। विशेषार्थ-मनुष्य अपर्याप्तकोंके ७ पद, वैक्रियिकमिश्रकाययोगीके पद, आहारककाययोगीके ७ पद, आहारकमिश्रकाययोगीके ७ पद, अपगतवेदीके ८, सूक्ष्मसाम्परायसंयत के ३, उपशमसम्यग्दृष्टिके १०, सासादनसम्यग्दृष्टिके ७ और सम्यग्मिथ्यादृष्टिके ७ पद होते हैं । अतः सात पदवाली जितनी मार्गणाएँ हैं, उनमेंसे प्रत्येकमें २१८६, अपगतवेद मार्गामें ६५५८, सूक्ष्मसाम्परायसंयत मार्गणामें २६ और उपशम सम्यग्दृष्टि मार्गणामें ५९०४८ अध्रुवभङ्ग होते हैं । इन भङ्गोंके लानेकी विधि पहले कह आये हैं। ३८५. पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक तथा इनके बादर और बादर अपर्याप्त तथा इनके सब सूक्ष्म, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर और इनके अपर्याप्त जीवों में पाठ कौके अपने-अपने सब पदवाले जीव नियमसे हैं। नारकियोंसे लेकर संक्षीतक शेष सब मार्गणाओंमें सात कर्मोंके अवस्थित पदवाले जीव नियमसे हैं। तथा शेष पद भजनीय हैं। तथा आयुकर्मके दोनों ही पद भजनीय हैं। _____ इस प्रकार भङ्गविचयानुगम समाप्त हुआ। 1. मूलप्रतौ सेसाणं पदाणि इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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