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________________ १९४ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे __३८०. सामाइ०-छेदो० सत्तएणं क० णिरयभंगो । णवरि असंखेज्जगुण-वडिहाणि० जहएणु० अंतो०। परिहार०-संजदासंजद० सत्तएणं क. णिरयभंगो । मुहुमसंप० छएणं कम्माणं संखेजभागवड्डि-हाणि जह० उक्क० अंतो । अवहि. जहण्णु० एग० । चक्खुदं० तसपज्जत्तभंगो। ३८१. तिषिणले. सत्तएणं क० णिरयभंगो। णवरि अवहि जह• एग० उक्क० चत्तारि समयं । मुक्काए आणदभंगो । णवरि असंखेजगुणवडि• जह० एग०, उक्क० अंतो० । असंखेजगुणहाणि० जहएणु० अंतो० । अवत्त० एत्थि अंतरं । ३८२. उवसम० सत्तएणं क० चत्तारि वडि-हाणि-अवढि०-अवत्त० सुकाए भंगो । असरणीसु वडि-हाणि. ओघं । अवहि० जह० एग०, उक्क तिरिण समः । संखेज्जगुणवड्डि-हाणि जह• खुद्दा०, उक्क० अणंतकालमसं० । सएिण. पंचिंदियपज्जत्तभंगो । णवरि संखेज्जगुणवडि-हाणि• जह० एग०, उक्क० अंतो० । आहारा० ओघं । वरि सगहिदि भागिदव्वं । अणाहारा० कम्मइगभंगो । एवं अंतरं समत्तं । ३८०. सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंमें सात कमौके अपने पदोंका अन्तर नारकियोंके समान है । इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणवृद्धिवन्ध और असंख्यात. गुणहानिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। परिहारविशुद्धिसंयत और संयतासंयत जीवों में सात कौके अपने पदोंका अन्तर नारकियोंके समान है। सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवों में छह कर्मोंके संख्यातभागवृद्धिबन्ध और संख्यातभागहानिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थितबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। चतुदर्शनी जीवोंमें सात कर्मोंके अपने पदोंका अन्तर त्रसपर्याप्तकोंके समान है। ३८१. तीन लेश्यावाले जीवोंमें सात कौके अपने पदोंका अन्तर नारकियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि अवस्थितबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है। शुक्ललेश्यामें सात कौके अपने पदोंका अन्तर आनत कल्पके समान है। इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणवृद्धिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातगुणहानिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। तथा अवक्तव्यबन्धका अन्तरकाल नहीं है। ३८२. उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सात कर्मोंके चार वृद्धिबन्ध, चार हानिबन्ध, अवस्थितबन्ध और अवनध्यबन्धका अन्तर शुक्ललेश्याके समान है। असंही जीवों में वृद्धिबन्ध और हानिबन्धका अन्तर ओघके समान है। अवस्थितबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर तीन समय है। संख्यातगुणवृद्धिबन्ध और संख्यातगुणहानिबन्धका जघन्य अन्तर तुल्लक भवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । संशी जीवों में सात कर्मों के अपने पदोंका अन्तर पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकोंके समान है। इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणवृद्धिबन्ध और संख्यातगुणहानिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहर्त है। आहारक जीवों में सात कौके अपने पदोंका अन्तर ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि यहां असंख्यातगुणवृद्धिबन्ध और असंख्यातगुणहानिबन्धका उत्कृष्ट अन्तर कहते समय वह अपनी उत्कृष्ट कायस्थिति. प्रमाण कहना चाहिए । अनाहारक जीवोंमें सात कर्मोंके अपने पदोंका अन्तर कार्मणकाययोगी जीवोंके समान है । इस प्रकार अन्तरकाल समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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