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महाबंधे टिदिबंधाहियारे णवुस०-मणपज्जव-संजद-सामाइ०-छेदो० असंखेजगुणवडिबंधो० जहएणु० एगस ।
३६८. आदेसेण णेरइएसु सत्तण्णं क. तिषिणहाणि-अवहिद० ओघं । कम्मइ०-अवगदवे०-सुहुमसं०-अणाहार वज्ज सेसाणं सगपदा णिरयभंगो । वरि असण्णि० संखेजगुणवडि-हाणि. जहएणु० एगस० । ____३६६. अवगद० तिषिणक० दोवडि-हाणि. वेदणी०-णामा-गोदाणं तिषिणवडि-हाणि मोहणी० एगवडि-हाणि जहण्णु० एगस । सत्तएणं क० अवहि०अवत्त० ओघं । सुहुमसं० छएणं क. एगवडि-हाणि जहएणुक० एग० । अवहि०
ओघं । कम्मइ०-अणाहार० सत्तएणं क० तिएिणवडि-हाणि० जह० उक्क० एग० । अवहि० जह० एग०, उक० तिष्णि समयं । एवं कालं समत्तं ।
३७०. अंतराणुगमेण दुवि०---ोघे आदे० । ओघेण सत्तएणं क० असंखेजभागवडि-हाणि-अवहिदबंधंतरं जह० एग०, उक्क० अंतो० । दोवडि-हाणिबंधंतरं वेदी, नपुंसकवेदी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामयिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंमें असंख्यातगुणवृद्धिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है।
विशेषार्थ-उपशामकके अनिवृत्तिकरणमें प्रथमबार और उसी समयमें मरकर देव होनेपर दूसरे समयमें उस पर्यायमें दूसरी बार असंख्यातगुणवृद्धिबन्ध करनेसे असंख्यातवृद्धिबन्धका दो समय उत्कृष्ट काल उपलब्ध होता है। शेष कथन स्पष्ट है ।
३६८. श्रादेशसे नारकियोंमें सात कौंकी तीन हानि और अवस्थितबन्धका काल ओघके समान है। कार्मणकाययोगी, अपगतवेदी, सूक्ष्मसाम्परायसंयत और अनाहारक इन मार्गणाओंको छोड़कर शेष मार्गणाओंमें छापने-अपने पदोंका काल नारकियोंके समान है। इतनी बिशेषता है कि असंशी जीवोंमें संख्यातगुणवृद्धिबन्ध और संख्यातगुणहानिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है।
३६९. अपगतवेदी जीवों में तीन कौके दो वृद्धिबन्ध और दो हानिबन्धका, वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मके तीन वृद्धिबन्ध और तीन हानिबन्धका तथा मोहनीयके एक वृद्धिबन्ध और एक हानिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । तथा सातों कंौके अवस्थितबन्ध और अवक्तव्यबन्धका काल ओघके समान है। सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें छह कर्मोके एक वृद्धिबन्ध और एक हानिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितबन्धका काल अोधके लमान है । कार्मणकाययोगी और ग्रानाहारक जाबों में सात कोके तीन वृद्धिबन्ध और तीन हानिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक सत्य है। अवस्थित बन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय है।
इस प्रकार कालं समाप्त हुआ।
अन्तर ३०. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। श्रोघकी अपेक्षा सात कमौके असंख्यातभागवृद्धिबन्ध, असंख्यातभागहानिबन्ध और अवस्थितबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट वान्तर अन्तर्मुहूर्त है । दो वृद्धिबन्ध और दो हानिबन्ध का जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनके बराबर है। असंख्यातगुणवृद्धिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर
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