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________________ वदिवंधे कालो १८७ कस्स ? अण्णदरस्स उवसामगस्स परिवदमाणगस्स । दोहाणि अवहि० कस्स ? अएणदरस्स उवसामगस्स वा खवगस्स वा । एवं मोहणीयस्स संखेजभागवडिहाणि अवडिद. अवसव्वबंधगा य । वेदणीय-णामा-गोदाणं तिएिणवडिअवत्तव्वबंधो कस्स ? अएणदरस्स उवसामगस्स परिवदमाणस्स । तिएिणहाणिअवहिदबंधो कस्स होदि ? अएणदरस्स उवसामगस्स वा खवगस्स वा । मुहुमसंप० छएणं क० संखेज्जभागवड्डी कस्स ? अएणदरस्स उवसामगस्स परिवदमाणस्स । संखेज्जभागहाणि-अवट्ठिदबंधो कस्स ? अएणदरस्स उवसामगस्स वा खवगस्स वा । उवसमसम्मादिही अोधिभंगो। वरि खवग त्तिण भाणिदव्वं । एवं सामित्तं समत्तं । कालो ३६७. कालाणुगमेण दुवि०-ओघे० प्रादे० । ओघेण सत्तएणं क० चत्तारिवडि-तिएिणहाणिबंधो केव० ? जह० एग०, उक्क० सम० । असं गुणहाणिअवत्त०' जहएणुक्क० एग० । अवहि० जह० एग०, उक्क० अंतो० । आयुग० दो वि पदा० भुजगारभंगो । एवं ओघभंगा एसिं चत्तारिवड्डि-हाणि० अवहिद० अवत्तव्वबंधगा य अत्थि तेसिं । णवरि मणुस०३-पंचमण-पंचवचि०-ओरालियका -इत्थिसंख्यातगुणवृद्धिका बन्ध और अवक्तव्य बन्ध किसके होता है ? किसी भी उपशामक गिरनेवालेके होता है। दो हानियोंका बन्ध और अवस्थित बन्ध किसके होता है ? किसी भी उपशामक और क्षपकके होता है। इसी प्रकार मोहनीयकी संख्यात भागवृद्धि, संख्यातभागहानि, अवस्थित और अवक्तव्यबन्धका स्वामी जानना चाहिए। वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मकी तीन वृद्धियोंका बन्ध और अवक्तव्यबन्ध किसके होता है। किसी भी उपशामक गिरनेवालेके होता है । तीन हानियोंका बन्ध और अवस्थितबन्ध किसके होता है ? किसी भी उपशामक और क्षपकके होता है। सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें छह कर्मोकी संख्यातभागवृद्धिका वन्ध किसके होता है ? किसी भी उपशामक गिरनेवालेके होता है। संख्यातभागहानिबन्ध और अवस्थितबन्ध किसके होता है। किसी भी उपशामक और क्षपकके होता है। उपशम सम्यग्दृष्टि जीवोमें सम्भव सब पदोका स्वामित्व अवधिशानियोके समान है। इतनी विशेषता है कि यहाँपर 'क्षपकके होता है, ऐसा नहीं कहना चाहिए। इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ। काल ३६७. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - श्रोध और आदेश। अोधकी अपेक्षा सात कोके चार वृद्धिबन्ध और तीन हानिबन्धका काल कितना है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय है। असंख्यातगुणहानिबन्ध और प्रवक्तव्य बन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। आयुकर्मके दोनों ही पदोंका काल भुजगारबन्धके समान है। जिन मार्गणाओंमें चारों बृद्धियों, चारों हानियों, अवस्थित और अवक्तव्य पदका वन्ध करनेवाले जीव हैं ,उनमें सब पदोंका काल इसी प्रकार अोधके समान जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि मनुष्यत्रिक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, औदारिक काययोगी, स्त्री १. मूलप्रतौ अवत्त० जह० एग इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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