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________________ पदणिक्खेवे जहएणसामित्तं १७६ अणियट्टिवादरसांपराइयस्स पढमादो हिदिबंधादो विदिए हिदिबंधे वट्टमाणयस्स तस्स उक० हाणी । एवं सुहुमसांपराइ छएणं क० । ३५१. असपिण. सत्तएणं क० उक्क० वड्डी कस्स होदि ? एइंदियो असएिणपंचिदिएसु उववरणो तस्स उक्क० वट्टी होदि। असएिणपंचिंदियो एइंदियेसु उववरणो तस्स उक्क. हाणी । उक्कस्सयमवहाणं असएिणपंचिंदिय० सत्याणं कादव्वं । __ ३५२. जहएणए पगदं । दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० सत्तएणं क० जहएिणया वड्डी कस्स होदि ? यो समयणउक्कस्सियं हिदि बंधमाणो पुण्णाए हिदिवंधगद्धाए उकस्सयं संकिलेसं गदो उक्कस्सयं हिदिवंधो तस्स जहएिणया वड्डी । जहणिया हाणी कस्स होदि ? यो समयुत्तरं जहएणयं हिदि बंधमाणो पुरणाए हिदिबंधगद्धाए उक्कस्सयं विसोधिं गदो तस्स जहएणयं डिदिबंधो तस्स जहरिणया हाणी । एक्कदरत्थ अवहाणं । एवं सत्थाणं याव अण्णाहारग त्ति । मवरि अवगद०मुहुमसं० सत्तएणं कछएणं क० जहरिणया वड्डी कस्स होदि ? उवसामयस्स परिवदमाणस्स विदिए हिदिबंधे वट्टमाणस्स तस्स जह० वड्डी । जहएिणया हाणी कस्स० ? खवगस्स चरिमे द्विदिबंधे वट्टमाणस्स तस्स जह० हाणी। तम्हि चेव जहएणयमवहाणं । जीव प्रथम स्थितिबन्धके बाद द्वितीय स्थितिबन्धमें विद्यमान होता है, उसके उत्कृष्ट हानि होती है। इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायिक जीवोंके छह कौकी अपेक्षा उत्कृष्ट वृद्धि, उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थान जानना चाहिए ।। ३५१. असंही जीवोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट वृद्धि किससे होती है ? जो एकेन्द्रिय असंही पञ्चेन्द्रियों में उत्पन्न होता है, उसके उत्कृष्ट वृद्धि होती है। जो असंशी पञ्चेन्द्रिय एकेन्द्रियों में उत्पन्न होता है, उसके उत्कृष्ट हानि होती है। तथा उत्कृष्ट अवस्थान असंक्षी पञ्चेन्द्रियके स्वस्थानकी अपेक्षा कहना चाहिए। इस प्रकार उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ। ३५२. अब जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश। ओघसे सात कर्मोंकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जो एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करते हुए स्थितिबन्धके कालके पूर्ण हो जानेपर उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करता है, उसके जघन्य वृद्धि होती है। जघन्य हानि किसके होती है ? जो एक समय अधिक जघन्य स्थितिका बन्ध करते हुए जघन्य स्थितिबन्धके कालके पूर्ण हो जानेपर उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त होकर जघन्य स्थितिबन्ध करता है, उसके जघन्य हानि होती है। तथा इनमेंसे किसी एक जगह जघन्य अवस्थान होता है। इस प्रकार स्वस्थानकी अपेक्षा अनाहारक मार्गणा तक कथन करना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपगतवेदी और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवों में क्रमसे सात और छह कौकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जो उपशामक उपशम श्रेणिसे उतरते हुए दूसरे स्थितिबन्धका प्रारम्भ करता है,उसके जघन्य वृद्धि होती है। जघन्य हानि किससे होती है ? जो क्षपक अन्तिम स्थितिबन्ध कर रहा है, उसके जघन्य हानि होती है और इसीमें जघन्य अवस्थान होता है। इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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