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________________ १६६ महाबंधे हिदिबंधाहियारे अट्ठचो । अवत्त० खेत्तभंगो । आयु० दो पदा० अट्ठचो । एवं अोधिद०सम्मादि०-खइग०-वेदग । संजदासंज. सत्तएणं क. तिषिण पदा० छच्चो६० । आयु० खेत्तं । ३१७. तेउले. सत्तएणं क. भुज-अप्प-अवट्टि अट्ठ-णवचो । आयु. दो वि पदा अट्टचो० । पम्माए सव्वे भंगा अहचो । सुकाए सव्वे भंगा छच्चो० । णवरि सत्तएणं क० अवत्त० [खेत्त-7 भंगो। ३१८. सासण. सत्तएणं क. भुज०-अप्प०-अवहि०. अह-बारह० । आयु. दो पदा० अहचो० । सम्मामि० सत्तएणं क. भुज-अप्प०-अवहि० अहचोइस० । एवं फोसणं समत्तं । कालाणुगमो ३१६. कालाणुगमेण दुवि-ओघे० आदे। ओघे० सत्तएणं क. भुज०अप्प-अवहि केवचिरं कालादो होदि ? सव्वद्धा। अवत्त० जह• एग०, उक्क० संखेजसमयं । आयु० दो वि पदा० सव्वद्धा। एवं सव्वाणं अणंतरासीणं सगपदाणं । चौदह राजू है । प्रवक्तव्य पदका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। आयुकर्मके दोनों ही पदोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । संयतासंयत जीवों में सात कमौके तीन पदोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजू है। आयुकर्मके दोनों पदोका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। ___ ३१७. पीतलेश्यावाले जीवोंमें सात कौके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू है। आयुकर्मके दोनों ही पदोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू है। पद्मलेश्यामें सब पदोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू है। शुक्ललेश्यामें सब पदोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजू है। इतनी विशेषता है कि इनके सात कर्मों के प्रवक्तव्य पदका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। ३१८. सासादन सम्यग्दृष्टि जीवों में सात कमौके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू है। आयकर्मके दोनों ही पदोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू है। सम्यग्मिथ्यार्दा जीवों में सात कौके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू है। इस प्रकार स्पर्शनानुग़म समाप्त हुआ। कालानुगम ___३१९. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-मोघ और आदेश । ओघकी अपेक्षा सात कमौके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदोंका कितना काल है ? सब काल है। अवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। आयुकर्मके दोनों पदोंका बन्ध करनेवाले जीपोंका सब काल है। इसी प्रकार सब अनन्त राशियोंके अपने-अपने पदोंका काल जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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