________________
भुजगारबंधे फोसणाणुगमो
१६५ ३१३. देवेसु सत्तएणं क. भुज-अप्प-अवहि. अह-णवचो० । आयु० दो वि पदा अहचो० । भवण-वाणवें-जोदिसि० सत्तएणं क. भुज-अप्प०-अवहि० अधु-अह-णवचो० । आयु० दो वि पदा अधु-अहचो । सोधम्मीसाणे देवोघं । सणक्कुमार याव सहस्सार ति सव्वे भंगा अहचो० । आणदादि अच्चुदा त्ति छच्चो६० । उवरि खेत्तं ।।
३१४. पंचिंदिय-तस० तेसिं पज्जता. पंचमण-पंचवचि०-इत्थि-पुरिस०चक्खुदं०-सणिण त्ति सत्तएणं क. भुज०-अप्प-अवहि० अट्ठचो० सबलोगो वा । अवत्त० ओघं । आयु० दो वि पदा अहचो ।
३१५. वेउव्विय० सत्तएणं क. भुजा-अप्प०-अवहि. अह-तेरहचो० । आयु० दो वि पदा अहचो० । वेउव्वियमि०-आहार०-आहारमि०-कम्मइ०-अवगद०-मणपज्ज०-संजद-सामाइ०-छेदो०-परिहार०-सुहुमसं०-अणाहारग त्ति खेत्तभंगो।
३१६. विभंगे सत्तएणं क. भुज०-अप्प०-अवहि० अह-तेरहचोद्द० सव्वलो। आयु० दो वि पदा अट्टचो० । आभि-सुद०-अोधि० सत्तएणं क. तिएिणपदा०
३१३. देवोंमें सात कोंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और नौ बटे चौदह राजू है। आयुकर्मके दोनों ही पदोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू है। भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवों में सात कौके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदोंका स्पर्शन कुछ कम साढ़े तीन बटे चौदह राजू,
आठ बटे चौदह राजू और नौ बटे चौदह राजू है। आयुकर्मके दोनों ही पदोंका स्पशन कुछ कम साढ़े तीन बटे चौदह राजु और आठ बटे चौदह राजू है। सौधर्म और ऐशान कल्पमें सब पदोंका स्पर्शन सामान्य देवोंके समान है। सानत्कुमार कल्पसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें सब पदोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू है। श्रानत कल्पसे लेकर अच्युत कल्प तकके देवों में सब पदोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजू है। इससे आगेके देवों में सब पदोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है।
३१४. पञ्चेन्द्रिय, त्रस और इन दोनोंके पर्याप्त, पाँचौ मनोयोगी, पाँची वचनयोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, चक्षुदर्शनी और संशी जीवों में सात कर्मोंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोक है । अवक्तव्य पदका स्पर्शन ओघके समान है। आयुकर्मके दोनों ही पदोंका स्पर्शन कुछकम आठ बटे चौदह राजू है।
३१५. वैक्रियिककाययोगी जीवों में सात कमौके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और तेरह बटे चौदह राजू है। आयुकर्मके दोनों ही पदोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारक काययोगी, आहारक मिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, अपगतवेदी, मनःपर्ययशानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसाम्परायसंयत और अनाहारक जीवोंके अपने सब पदोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है।
३१६. विभगवान में सात कौके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू, कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू और सब लोक है। श्रायु
मके दोनों पटोका स्पर्शन कळ कम आठ बटे चौदह राज है। श्रामिनिबोधिकहानी. श्रुतमानी और अवधिज्ञानी जीयों में सात कमौके तीन पदोका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org