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________________ महाबंधे टिदिबंधाहियारे चेव सव्वसुहम० सव्ववणप्फदि णियोद-बादरवणप्फदिपत्तेय. तस्सेव अज्जत्ता । सव्वबादराणं आयु० दो पदा लोगस्स असं। णवरि बादरएइंदि०-बादरवाउ० लोगस्स संखेज । कायजोगि-अोरालियका-ओरालियमि०-गदुस-कोधादि०४मदि०-सुद-असंज-अचक्खु०-किरण--णील-काउ०-भवसि-अब्भवसि०मिच्छादि०-असरिण-आहारग त्ति ओघं । णवरि अवत्त० केसिं चेव पत्थि । येसिमत्थि तेसिमोघं । ३११. आदेसेण णेरइएमु सत्तएणं क. भुज-अप्प-अवहि छच्चो।सभा० । आयु० खेत्तभंगो । पढमपुढवि० खेत्तभंगो । विदियादि याव सत्तमा त्ति एवं चेव.। गवरि सगफोसणं । ३१२. सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-मणुसअपज्ज-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदिय-तसअपज्जत्ता बादरपुढवि०-आउ०-तेउ०-वाउ०-बादरवण पत्ते पज्जत्ता. सत्तएणं क०भुज०-अप्प०-अवहि लोगस्स असं० सव्वलोगो वा । णवरि बादरवाउ० लोगस्स संखे० सव्वलो । आयु० खेत्तभंगो। मणुस०३ सत्तएणं क. भुज-अप्प-अवहि० अपज्जत्तभंगो । अवत्त० अोघं । आयु० खेत्तभंगो । कायिक और इनके अपर्याप्त तथा इन्हींके सब सूक्ष्म, सब वनस्पतिकायिक, सब निगोद, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर और इनके अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु सब बादरोंके प्रायकर्मके दो पदोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि बादर एकेन्द्रिय और बादर वायुकायिक जीवोंका आयुकर्मके दो पदोंका स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है। काययोगी, औदारिक काययोगी, औदारिक मिश्रकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताशानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंही और आहारक जीवोंके सब पदोंका स्पर्शन ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमेंसे प्रवक्तव्य पद किन्हींके नहीं हैं। जिनके हैं उनके उसका स्पर्शन अोधके समान है। ३११. प्रादेशसे नारकियोंमें सात कौके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। पहली पृथिवीमें क्षेत्रके समान स्पर्शन है। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवीतक इसी प्रकार है। किन्तु इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी पृथिवीका स्पर्शन कहना चाहिए। ३१२. सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त, सब विकलेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त, अस अपर्याप्त, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक पर्याप्त और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त जीवों में सात कर्मों के भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक है । इतनी विशेषता है कि बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंमें उक्त पदोंका स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक है। तथा इन सब मार्गणाओंमें आयुकर्मके दोनों पदोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। मनुष्यत्रिकमें सात कर्मोंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदोंका स्पर्शन मनुष्य अपर्याप्तकोंके समान है। अवक्तव्य पदका स्पर्शन ओघके समान है । तथा आयुकर्मके दोनों पदोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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