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________________ भुजगारबंधे फोसणाणुगमो १६३ वाउ० तेसिं बादर-बादरअपज्ज० तेसिं चेव सव्वसुहुम०बादरवणप्फदि०पत्ते. तस्सेव अपज्ज० सव्वे भंगा सव्वलोगे। णवरि बादरेसु लोग असं० । वाउ० लोगस्स सखे० । सेसाणं संखेज-असंखेजरासीणं सव्वे भंगा लोगस्स असं० । णवरि वाउ. पज्जत्ते लोगस्स संखेजदिभागे । एवं खेत्तं समत्तं । फोसणाणुगमो ३१०. फोसणाणुगमेण दुवि०-ओघे० आदे०। ओघे० सत्तएणं क. भुज०-अप्प-अवढि०बंधगेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगो । अवत्त० लोग० असं० । आयु० अवत्त०-अप्पद० सव्वलोगो। एवं ओघभंगो तिरिक्खोघं सव्वएइंदि०पुढवि०-आउ०-तेउ०-वाउ०-बादरपुढवि०-आउ०-तेउ०-चाउ० तेसिं अपज्जत्ता. तेसिं और बादर अपर्याप्त तथा इन्हींके सब सूक्ष्म बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर तथा इन्हींके अपर्याप्त जीवोंमें सब पदोंका क्षेत्र सब लोक है। इतनी विशेषता है कि बादरोंमें लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है और बादर वायुकायिकोंका लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है। शेष रहीं संख्यात और असंख्यात राशियोंमें सब पदोंका लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है। इतनी विशेषता है कि वायुकायिक पर्याप्त जीवों में लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। विशेषार्थ-यहां भुजगारबन्ध आदिकी अपेक्षा क्षेत्रका विचार किया गया है। लोकमें प्रायः एकेन्द्रियादि सभी जीव सात कर्मोंका भुजगार, अल्पतर और अवस्थितबन्ध करते हैं, इसलिए इन पदोंका सामान्यरूपसे सब क्षेत्र कहा है। प्रवक्तव्यबन्ध उपशमश्रेणिसे उतरनेवाले जीवोंके या मोहनीयकी अपेक्षा सूक्ष्मसाम्परायमें और सात कर्मोंकी अपेक्षा उपशान्तमोहमें मरकर देव होनेवाले जीवोंके होता है, यतः इनका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है, अतः सात कमौके अवक्तव्य पदका बन्धवाले जीवोंका उक्त प्रमाण क्षेत्र कहा है। तथा आयुकर्मके दो पदोंकी प्राप्ति एकेन्द्रिय सब जीवोंके होती है, इसलिए आयुकर्मके दोनों पदवाले जीवोंका भी सब लोक क्षेत्र कहा है। यहां शेष मार्गणाओं में सम्भव पदोंके क्षेत्रका सामान्यरूपसे संकेत किया ही है । सो उस मार्गणाके क्षेत्रको जानकर यथासम्भव उसे घटित कर लेना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जिन मार्गणाओंमें सात कर्मोंका बन्ध होता है, उन सबमें सात कर्मोका प्रवक्तव्य पद नहीं होता, किन्तु जिन मार्गणाओंमें उपशमश्रेणिका आरोहण और अवरोहण सम्भव है,उन्हीं में अवक्तव्य पद होता है। सो सर्वत्र इस पदवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही है। इस प्रकार क्षेत्रानुगम समाप्त हुआ। ३१०. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। उनमेंसे ओघकी अपेक्षा सात कर्मोंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? सब लोकका स्पर्श किया है। प्रवक्तव्य पदका बन्ध करने वाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। आयुकर्मके प्रवक्तव्य और अल्पतर पदका बन्ध करनेवाले जीवोंने सब लोकका स्पर्श किया है। इसी प्रकार ओघके समान सामान्य तिर्यञ्च, सब एकेन्द्रिय, पृथिवीकायिक, अलकायिक, अग्निकायिक, बायुकायिक, बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर वायु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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