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________________ १६२ महाबंधे टिदिबंधाहियारे संखेजा। आयु० दो वि पदा असंखेज्जा । एवं पंचिंदिय-तस०२-पंचमण-पंचवचि०. आभि०-सुद०-अोधि०-नवखुदं०-अोधिदं०-मुक्कले०-सम्मादि०-वइग० । [णवरि मुक्कले०-खइगस०] आयु० दो पदा संखेज्जा । मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु सव्वे भंगा संखेज्जा । एवं सव्वह-आहार-आहारमि०-अवगदवे-मणपज्ज०--संजद०--सामाइ०छेदो०-परिहार०-मुहुमसंपरा० । __३०८, कम्मइ०-अणाहार० सत्तएणं क० भुज०-अप्प०-अवहि० अणंता । एवं परिमाणं समत्तं । खेत्ताणुगमो ३०६. खेत्तं दुवि०-अोघे० आदे० । ओघे० सत्तएणं क. भुज०-अप्प०अवहि. केवडि खेत्ते? सव्वलोगे। अवत्त लोग० असंखे भागे। आयु० अवत्त०अप्पद० सव्वलोगे। एवं सव्वअणंतरासीणं । णवरि तेसिं चेव सत्तएणं क० अवत्त० णत्थि । बादरएइंदियपज्जत्तापज्जत्त० आयु. लोग० असंखे०। वणप्फदिबादर-णियोद-पज्जत्तापज्जत्ता० आयु० लोग० असं०भागे । पुढवि०-आउ०-तेउ० दोनों ही पदोंका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय द्विक, प्रस द्विक, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, आभिनिबोधिकशानी, श्रुतशानी, अवधिशानी, चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शुक्ल लेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि शुक्ललेश्यावाले और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें आयुकर्मके दोनों पदोंका बन्ध करनेवाले जीव संख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में सभी पदोंका बन्ध करनेवाले जीव संख्यात हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देव, आहारक काययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंके जानना चाहिए । ३०८. कार्मण काययोगी और अनाहारक जीवों में सात कौके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव अनन्त हैं। इस प्रकार परिमाणानुगम समाप्त हुआ। क्षेत्रानुगम ३०९. क्षेत्र दो प्रकारका है-श्रोध और श्रादेश। ओघकी अपेक्षा सात कर्मोंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जोवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है। अवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। आयुकर्मके श्रवक्तव्य और अल्पतर पदका बन्ध करनेवाले जीवोंका सब लोक क्षेत्र है। इसी प्रकार सब अनन्त राशियोका जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि यह उन्हींका जानना चाहिए जिनके सात कर्मोका अवक्तव्य पद नहीं होता। बादर एकेन्द्रिय, पर्याप्त और अपर्याप्त जीवों में आयुकर्मके दोनों पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । बादर वनस्पति पर्याप्त और अपर्याप्त तथा निगोद पर्याप्त तथा अपर्याप्त जोवों में श्रायुकर्मके दोनों पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक तथा इनके बादर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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